________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (133) स्तब्ध थे। सब शोक की राजधानी बन गये थे। सब आँखों से आँसू बहाते थे और निःश्वास छोड़ते थे। सब दुःखपीड़ित हो गये थे। किसी को खानापीना भी सूझता नहीं था। भगवान गर्भ में एकदेश से हिले यह स्थिति अधिक समय तक नहीं रही। कुछ समय बाद भगवान ने यह जान लिया कि पहले जो बाजे बज रहे थे, वे बन्द हो गये हैं। वे क्यों बन्द हो गये हैं? यह जानने के लिए. अवधिज्ञान का उपयोग किया, तो सब वृत्तान्त उन्हें मालूम हो गया। उन्होंने सोचा कि किं कूर्मः कस्य वा ब्रूमः, मोहस्य गतिरीदृशी। दुष्धातोरिवास्माकं, दोषनिष्पत्तये गुणाः।। इस मोहराजा की गति कैसी है ! मैंने तो गुण किया, पर यहाँ उलटे अवगुण हो गया। .. कलिकाल का दृष्टान्त - इस पर कलिकाल का दृष्टान्त कहते हैं- कोई एक पथिक परदेश से बहुतसा धन कमा कर अपने घर जा रहा था। रास्ते में एक जंगल आया। उस जंगल में दावानल लगा था। उसमें एक सर्प फँस गया था। उसने उस पथिक से कहा कि मुझे इस दावानल से बाहर निकालो। उस पथिक ने उसे बाहर निकाला। तब सर्प ने कहा कि तुम खड़े रहो। मैं तुम्हें खाने वाला हूँ। तब वह पुरुष बोला कि मैंने तुझे जलने से बचाया, तुझ पर उपकार किया और मृत्यु से तेरी रक्षा की, फिर भी तू मुझे खायेगा? साँप ने कहा कि आजकल कलिकाल चल रहा है। आज के समय में गुण का दोष होता है, इसलिए मैं तुझे काढूँगा। तब पथिक ने कहा कि मैं बहुत वर्षों के बाद घर जा रहा हूँ। मेरे पास धन है। वह धन मैं मेरी पत्नी को दे कर उससे बिदा ले कर मैं वापस लौट आऊँगा। यह वचन दे कर वह अपने घर गया। उसने अपनी स्त्री को सब बात बता दी। ___फिर उससे बिदा ले कर वह पुरुष पुनः उस जंगल में गया। उसकी स्त्री भी उसके पीछे पीछे गयी। सर्प की स्तुति कर के उसने कहा कि हे नागराज! यदि तुम मेरे पति को खा जाओगे; तो मेरी क्या गति होगी? मेरे दुश्मन बहुत हैं। तब सर्प ने कहा कि मैं तुझे शत्रुनिवारण का उपाय बताता हूँ। तू बिल्कुल चिन्ता मत कर। मेरे