________________ (132) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध हैं और इसी कारण से मेरा गर्भ गल गया है। इसलिए मैं तो अपार दुःखिनी हो गयी हूँ। चौदह स्वप्नसूचित मेरा गर्भ चला गया, तो अब मुझे संसार में क्या सुख रहा? मैं राज-पाट को क्या करूँ? अधिक क्या कहूँ? त्रिलोक-पूजित पुत्र के बिना मेरे लिए सब सूना है। अब मैं कहाँ जाऊँ? क्या करूँ? किसके सम्मुख जा कर पुकार करूँ? इस प्रकार विलाप करती हुई त्रिशलादेवी यूथभ्रष्ट हरिणीसरीखी हुई। वह जहाँ-तहाँ घूमने लगी, निःश्वास छोड़ने लगी। ऐसी अव्यवस्थित त्रिशलादेवी को देख कर सखियाँ उससे पूछने लगी कि हे स्वामिनी ! आज तुम ऐसी क्यों हो रही हो? हम तुमसे पूछती हैं कि इस दुःख का कारण क्या है? तब त्रिशलादेवी आँख में आँसू ला कर निःश्वास छोड़ती हुई बोली कि हे सखियो ! मैं तुमसे क्या कहूँ? मैं अभागिनी हूँ। मेरा जीवितव्य चला गया। तब सखियाँ बोली कि हे सखी ! ऐसे अमंगल वचन मत बोलो। अन्य सब तो रहा, पर तुम्हारा गर्भ तो सकुशल है न ? तब त्रिशला बोली कि हे सखियो ! यदि मेरे गर्भ को कुशल होता, तो अन्य मेरे लिए क्या दुःख है? मेरा गर्भ जाता रहा है, यही दुःख है। इतना कह कर मूर्छित हो कर वह जमीन पर गिर गई। तब सखियों ने चन्दनजल छिडक कर तथा पवन से सचेतन कर उससे पुनः पूछा कि तुम्हारे गर्भ को क्या हुआ है? तब रानी गद्गद् स्वर से बोली कि मेरा गर्भ चला गया है। यह सुन कर सब सखियाँ भी दुःखी हो गयीं। फिर उन सबने राजा के पास जा कर यह समाचार कहा। इससे राजा भी बहुत दुःखी हुआ। राजा ने नाटक-संगीत आदि सब बन्द करवा दिया। सब शोकाकुल हो गये और सोचने लगे कि अब क्या करें? किसी को कुछ सूझता नहीं था। तब कुछ लोग तो निमित्तज्ञाता को पूछने गये, कुछ ज्योतिषी-योगी से पूछने गये और वृद्ध स्त्रियाँ शान्ति-पुष्टि करने लगीं। कुछ कुलदेवी को उपालंभ देने लगीं कि हे देवी ! इस समय तू कहाँ चली गयी? इस प्रकार सब विलाप करने लगे। कोई भी कुछ बोलता नहीं था। सब