________________ (118) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध परिणाम वाला होगा तथा भव्य जीवरूप कुवलय को बोध (प्रकाश) करने में चन्द्रमा के समान होगा।।६।। सातवें स्वप्न में सूर्य देखा। इससे वह मिथ्यात्वरूप अंधकार को दूर करने वाला होगा तथा स्वयं प्रभामंडल से अलंकृत होगा।।७।। आठवें स्वप्न में ध्वजा देखी। इससे वह कुल में ध्वजा के समान उत्तम होगा और धर्मध्वजा से विराजमान होगा। जगत को चारों दिशाओं में धर्मध्वजा से सुशोभित करेगा।।८।। नौवें स्वप्न में पूर्णकलश देखा। इससे वह सम्पूर्ण गुणी होगा तथा धर्मरूप प्रासाद पर कलश चढ़ायेगा।।९।। दसवें स्वप्न में पद्मसरोवर देखा। इससे वह जगत का ताप दूर करने वाला होगा तथा जब वह चलेगा, तब उसके पाँवतले देवता सुवर्णकमल बिछायेंगे।।१०।। ग्यारहवें स्वप्न में क्षीरसमुद्र देखा। इससे वह गंभीर हृदयवाला होगा तथा केवलज्ञानरूप रत्न प्राप्त कर चौदह राजलोक के भावों को जानेगा।।११।। बारहवें स्वप्न में देवविमान देखा। इससे वह देवों में पूज्य होगा। याने कि वैमानिक पर्यंत चार निकाय के देव उसकी सेवा करेंगे।।१२।। तेरहवें स्वप्न में रत्नराशि देखी। इससे वह देवों द्वारा निर्मित तीन गढ़ वाले समवसरण में बैठ कर भव्य जीवों को धर्मदेशना देगा।।१३।। चौदहवें स्वप्न में धुआँरहित अग्नि देखी। इससे वह दीप्तिवन्त (तेजस्वी) होगा तथा जैसे आग कंचन को शुद्ध करती है, वैसे ही तुम्हारा पुत्र आत्मा के शुद्ध स्वभाव की शुद्धि करने वाला होगा। वह भव्यजनों के मन शुद्ध करेगा तथा कर्ममल को जला डालेगा। त्रिशलादेवी ने चौदह स्वप्न देखे हैं, इसलिए वह चौदह राजलोक का स्वामी होगा। ऐसे उत्तम गुण वाला तुम्हारा पुत्र होगा। स्वप्नपाठक कहते हैं कि हे देवानुप्रिय ! हमारे स्वप्नशास्त्र में बयालीस स्वप्न सामान्य (अशुभ) फलदायक कहे हैं तथा तीस स्वप्न उत्तम (महान) फल देने वाले कहे हैं। कुल मिला कर बहत्तर स्वप्न कहे हैं। उनमें से श्री अरिहंत और चक्रवर्ती की माता अरिहंत और चक्रवर्ती गर्भ में आने पर तीस महास्वप्नों में से गजवृषभादि चौदह महास्वप्न देखती है। वासुदेव गर्भ में आने पर उसकी माता चौदह महास्वप्नों में से कोई भी सात स्वप्न देखती है।