________________ (106) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध सुखकारक, इन चारों को सुखकारक ऐसी मालिश करते हैं। इस प्रकार इन पूर्वोक्त तेलों से ऊपर कहे अनुसार मालिश किये जाने से थकान दूर होने के बाद सिद्धार्थ राजा ने, मल्लशाला से बाहर निकल कर जहाँ स्नानघर था, वहाँ जा कर स्नानघर में प्रवेश किया। वह स्नानघर कैसा है? उसमें मोती की जालियों के झरोखे हैं। उसका धरतीतल विचित्र मणिजटित है। वहाँ रमणीय स्नानमंडप है। उसमें अनेक प्रकार के मणिरत्नों से जड़ित चित्रित अनेक बाजोठ हैं। उन पर राजा सुखपूर्वक बैठे। स्नानजल कैसा है? फूलों की सुगंधवाला जल, चन्दन-कपूरादि वासितजल, उष्णजल, शुभजल, गंगाप्रमुख का निर्मल जल ऐसा स्नानजल है। उस जल से राजा ने प्रधान मज्जनविधि से कल्याण कारक स्नान किया। वहाँ अनेक प्रकार के जल उछालने प्रमुख कौतुक कर के कल्याणकारक स्नान के अन्त में कमल सरीखे सुवाले गंधवस्त्र से शरीर पोंछा। फिर बहुमोल वस्त्ररत्न पहने। इसके बाद सरस गोशीर्ष चन्दन से शरीर पर लेपन किया। पवित्र माला धारण की। वर्ण कुमकुमादि विलेपन किया। फिर मणिजड़ित सोने के आभूषण धारण किये। तथा अठारहसरा हार, नवसरा हार, तीससरा हार, लंबे झुमके प्रमुख आभूषण धारण किये और कन्दोरा बाँधा। गले में कंठी प्रमुख पहनी। उँगलियों में अंगूठी, वेढप्रमुख तथा बालों में पुष्पप्रमुख के आभूषण धारण किये। अच्छे जड़े हुए कड़े, जड़े हुए बेरखे तथा भुजाप्रमुख में भुजबंधादि धारण किये। इससे मानो भुजा स्तंभित हो गयी। इस कारण राजा का रूप बहुत निखर गया। कानों में कुंडल डालने से राजा का मुख बहुत शोभायमान हो गया। फिर राजा ने मस्तक पर देदीप्यमान मकट धारण किया। उनकी छाती हारप्रमख से सशोभित हो गयी। अंगूठियों से उँगलियाँ पीली हो गयीं। फिर राजा ने लंबे वस्त्र का उत्तरासंग कंधे पर डाला। अनेक प्रकार के मणिरत्न निर्मल बहुमोल, कुशल कारीगरों द्वारा निर्मित, देदीप्यमान, शुभ रचना से एक दूसरे में मिले हुए आभूषण मनोहर दिखाई देते थे। फिर राजा ने वीरवलय धारण किया।