________________ (112) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध नीतिशास्त्र में कहा है कियत्र सर्वेऽपि नेतारः, सर्वे मत्सरवादिनः। सर्वे महत्त्वमिच्छन्ति, तेऽवसीदन्ति वृन्दवत्।। जहाँ सब जन मुखिया होने लगते हैं और सब अहंकार सहित बोलने वाले होते हैं, परस्पर ईर्ष्या करने वाले होते हैं, सब बड़ाई की चाहना करने वाले होते हैं, उनका समुदाय जैसे पाँच सौ सुभट अनादर पा कर दुःखी हुए, वैसे दुःखी होता है। उन पाँच सौ सुभटों की कथा कहते हैं एक बार जहाँ तहाँ से आ कर पाँच सौ योद्धा (सुभट) इक्ट्ठे हो कर रोजगार के लिए देशान्तर गये। वहाँ किसी किसी राजा के यहाँ दो-दो,. चार-चार दिन रह कर चले जाते। ऐसा करते हुए एक बार वे किसी महर्द्धिक (बड़े) राजा से मिले। उस राजा ने उनके पास घोड़े, शस्त्र, आभूषण आदि सामग्री देख कर तथा उन सब को स्वरूपवान जान कर उन्हें सम्मान दिया। फिर उनसे पूछा कि तुम लोग कौन हो? कहाँ से आ रहे हो? तब उन लोगों ने राजा को प्रणाम कर कहा कि हे राजन् ! हम नौकरी करने आये हैं। उनकी बातें सुन कर राजाप्रमुख सारी सभा खुश हो गयी। तब राजा ने प्रधान को बुला कर कहा कि ये सुभट अच्छे दीखते हैं, आबरूदार हैं और संग्राम में पीछे हटने वाले नहीं है। राजा के ऐसे वचन सुन कर प्रधान ने कहा कि हे स्वामी! ये सुभट दीखने में तो अच्छे हैं; पर असंबंध हैं। क्योंकि इनमें कोई मालिक नहीं है, इसलिए काम पड़ने पर यदि ये भाग जायेंगे, तो आप उपालंभ किसे देंगे? ऐसा प्रधान ने कहा, तो भी राजा समझा नहीं। तब प्रधान ने जान लिया कि राजा की इच्छा इन सुभटों को नौकरी पर रखने की है। ऐसा समझ कर प्रधान ने कहा कि महाराज ! इनकी परीक्षा ले कर हम इन्हें नौकरी पर रखेंगे। राजा मान गया। उसने कहा कि सुख से परीक्षा करो। फिर प्रधान ने उन्हें कोई अच्छी जगह देख कर वहाँ ठहराया और रात के समय एक खाट, एक गादी और एक तकिया उन सुभटों के लिए भेजा तथा भोजनादि सामग्री भी बहुत भेजी। भोजन करने के बाद जब वे सोने