________________ (108) श्री कल्पसूत्र- बालावबोध 31. फलमाली, 32. मंत्रवादी, 33. धनुर्वादी, 34. दंडधर, 35. धनुर्धर, 36. खड्गधर, 37. छत्रधर, 38. चामरधर, 39. पताकाधर, 40 नेजाधर, 41 दीवीधर, 42. पुस्तकधर, 43. झारीधर, 44. तांबूलधर, 45. प्रतिहार, 46. शय्यापालक, 47. गजपालक, 48. अश्वपालक, 49. अंगमर्दक, 50. आरक्षक, 51. मीठे वचन बोलने वाला, 52. कथावाचक, 53. सत्यवादी, 54. गुणवर्णन करने वाला, 55. समस्या कहने वाला, 56. पारसी भाषा बोलने वाला, इस पर संधिपालक ने कहा कि मैं बड़े-बड़े काम करा देता हूँ। परस्पर बैरभाव हो, तो मित्रता करा देता हूँ और मित्रता हो, तो विरोध करा देता हूँ। मैं बुद्धि के अनेक काम कर सकता हूँ। मुझमें यह गुण है। फिर राजा ने उसकी परीक्षा के लिए अपने दुश्मन अरिमर्दन राजा के साथ मिलाप कराने के लिए भेंट के रूप में एक करंडक सी कर उसे दिया और कहा कि यह राजा को दे देना और हमारा बैर मिटा देना। यह कह कर संधिपालक को अरिमर्दन के पास भेजा। वहाँ से चलते चलते कुछ दिन बाद वह अरिमर्दन राजा के पास पहुँचा। फिर राजा के आगे भेंट रखते हुए पाँव छू कर बोला कि हे राजन्! जितशत्रु राजा ने तुम्हें प्रणाम कहा है और यह भेंट भेजी है। राजा ने भेंट खोल कर देखी, तो उसमें से करंडक निकला। उसे खोला तो उसमें से दृढ़बंधन से बँधी हुई एक सोने की डिबिया निकली। उसके बंधन खोले तो उसमें से राख निकली। तब प्रधान ने कहा कि तुम्हारे बैरी ने राख भेजी है। यह राख मल कर तुम जोगी बन जाओ। यह सुन कर राजा क्रोधातुर हुआ। ___ तब संधिपालक ने जान लिया कि राजा ने बैर साध लिया है। यह सोच कर औत्पातिकी बुद्धि से वह कहने लगा कि हे राजन् ! तुम उल्टा विचार मत करो। यह राख बहुत गुणकारी है। राजा ने पूछा कि इसमें क्या गुण है? तब संधिपालक बोला कि हमारे राजा ने एक यज्ञ किया था। उसमें अपार धन खर्च किया। यज्ञ पूरा होने के बाद उसकी भस्म तिलक करने के लिए सब राजाओं को भेजी है। इसमें कोई विरोध नहीं है। प्रभातकाल में इसका तिलक करने से जन्मान्तर के पाप नष्ट होते हैं और सौभाग्य बढ़ता है। यह सुन कर राजा प्रसन्न हुआ और उसने जाना कि मैंने बैरभाव से उल्टा सोचा, पर उसने तो बैर टालने के लिए यह उपकार किया है। फिर राजा ने उस संधिपालक को बहुत सम्मानित कर एक महीने तक अपने पास रख कर बहुत हाथी, घोड़े, आभूषण दे कर, पहेरामणी दे कर बिदा किया। तथा अब तुम्हारे राजा के साथ हमारी परम मित्रता है, ऐसा पत्र लिख दिया। ये सब भेंट ले कर संधिपालक अपने राजा के पास गया। उसे राजा का पत्र दिया और सब भेंट वस्तुएँ भी दीं। तब राजा चकित रह गया।