________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (87) उसने किसी को पानी नहीं दिया। फिर वह कटोरा वस्त्र से ढंक कर पानीहारे पर रख कर राजा अपने आवास में जा कर सो गया। फिर राजा को रात के समय प्यास लगी; तब पानी मँगाने के लिए पास में कोई मनुष्य नहीं था। एक दासी उसकी शय्या के पास सोयी हुई थी। उसने दासी से कहा कि अरी दासी! मुझे प्यास लगी है, इसलिए पानी ले आ। वह दासी जा कर मंत्रित किया हुआ पानी का कटोरा ले आयी और राजा को दे दिया। राजा ने भी अनजान में वह पानी पी लिया। उस पानी के प्रभाव से राजा ने गर्भ धारण किया। दिन दिन पेट बढ़ता गया। इससे राजा लज्जायमान हुआ। उसने राजसभा में जाना छोड़ दिया। तब प्रधान ने विचार किया कि यह तो बहुत बुरा काम हुआ। फिर उसने राजा से कह कर पुनः अठासी हजार ऋषिओं को आमन्त्रित किया और उन्हें उपालंभ दिया कि यह आप लोगों ने क्या कर दिया? अब कोई अच्छा उपाय कीजिये। फिर ऋषियों ने तैंतीस कोटि देवों की आराधना की। तब इन्द्र ने आ कर अपने सेवकों के हाथ से राजा का उदर विदारण कर के बालक को बाहर निकाला। तब सब कहने लगे कि यह बालक स्तनपान नहीं कर सकेगा। फिर इन्द्र ने स्त्रीरूप धारण कर के उस बालक को स्तनपान कराया। बालक धीरे धीरे बढ़ने लगा। उसका नाम मान्धाता रखा गया। ऐसी अनेक वार्ताएँ हैं। इसलिए गर्भपरावर्तन भी होता है; यह बात निःसन्देह है। हरिणगमेषी देवकृत गर्भपरावर्तन इन्द्र के हुक्म के बाद पायदल कटक का मालिक हरिणगमेषी देव खुश हो कर हाथ जोड़ कर मस्तक पर अंजली कर के आज्ञा को विनय सहित प्रणाम कर के इन्द्र महाराज के पास से निकल कर उत्तर-पूर्व के मध्य की ईशान दिशा में गया। वहाँ उसने वैक्रिय समुद्घात किया। वह कैसे किया सो कहते हैं- उसने अपने आत्मप्रदेश शरीर से बाहर निकाल कर संख्यात योजन ऊँचा दंड किया। आत्मप्रदेश कर्मपुद्गल का समूह