________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (97) कमलवन को खिलाने वाला है और इसी कारण से कमल की शोभा बढ़ाने वाला है। ज्योतिषशास्त्र की तथा ज्योतिष चक्र के चिह्न सरीखी पहचान कराने वाला है। आकाश में दीपक की तरह सुशोभित है। वह हिम के समूह को हाथ से गरदन पकड़ कर निकालने वाला है। वह ग्रहों का राजा है। रात्रि का नाश करने वाला है। ऊगते समय तथा अस्त होते समय दो घड़ी पर्यन्त उसे सुखपूर्वक देखा जा सकता है। इसके बाद सुखपूर्वक देखा नहीं जा सकता। और रात को विचरने वाले जो चोर आदि हैं, उनका भ्रमण मिटाने वाला है। वह शीत का नाश करेवाला है। वह मेरुपर्वत के चारों ओर निरन्तर विशाल मंडल सहित घूमता है तथा अपनी एक हजार किरणों से सब ज्योतिषियों की प्रभा को निस्तेज करता है। यहाँ सूत्रकार सूर्य की हजार किरणें कहते हैं, सो जघन्य आश्रित जानना। लोक में भी सूर्य को सहस्रकिरण कहने की रुढ़ि है। परन्तु सूर्य की किरणों में तो हर महीने घट-बढ़ होती है। वह इस प्रकार है- चैत्र में 1200 किरणें, वैशाख में 1300 किरणें, ज्येष्ठ में 1400 किरणें, आषाढ़ में 1500 किरणें, श्रावण में 1400 किरणें, भाद्रपद में 1400 किरणें, आश्विन में 1600 किरणें, कार्तिक में 1100 किरणें, मार्गशीर्ष में 1050 किरणें, पौष में 1000 किरणें, माघ में 1050 किरणें और फाल्गुन में 1100 किरणें होती हैं। ऐसा लोकनयनसमान सूर्य त्रिशलादेवी ने सातवें स्वप्न में देखा। - आठवें स्वप्न में ध्वजा देखी। वह ध्वजा सोने के दंड पर रही हुई है। वह पाँच वर्ण के वस्त्र की ध्वजा है। उस ध्वजा पर जो अनेक रंग के सुकोमल मोरपंख लगे हुए हैं, वे चोटी के समान शोभायमान हैं तथा बहुत श्रीकार हैं। उस ध्वजा में सिंह का रूप आलेखित है। उससे वह बहुत ही शोभायमान है। वह सिंह, जैसा शंख उजला होता है, कुन्दवृक्ष का फूल उजला होता है, जल का कण उजला होता है तथा रूपा का कलश उजला होता है, वैसा उजला श्वेतवर्ण वाला है। उस सिंह को देख कर लोग ऐसा समझते हैं कि मानो यह सिंह आकाशमंडल को भेदने का प्रयत्न कर रहा है। ऐसी उस सिंह