________________ (100) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध उसमें नदियाँ मिलती हैं, ऐसा कहते हैं। इसका क्या कारण है? उसे उत्तर देते हैं कि क्षीरसमुद्र का पाठ कहने से लवणसमुद्र का पाठ लेना। यदि लवणसमुद्र नहीं कहोगे तो 'गंगा और सिंधु नदियाँ मिलती हैं। यह पाठ भी सूत्रकार ने ही कहा है, सो नहीं मिलेगा। इसलिए यहाँ ऐसा समझना कि लवणसमुद्र का पानी मैला है, उस स्थान पर त्रिशलामाता इस लवणसमुद्र का पानी क्षीरसमुद्र के जल जैसा देखती है। ऐसा क्षीरसमुद्र त्रिशलादेवी ने ग्यारहवें स्वप्न में देखा। ___ बारहवें स्वप्न में देवविमान देखा। वह पुंडरीक उत्कृष्ट विमान है। उसमें उत्तम सुवर्णमणि के एक हजार आठ खंभे लगे हुए हैं। वह विमान आकाश में दीपक के समान चमक रहा है। उद्योत में सूर्य मंडल सरीखी शोभा है जिसकी, तथा जिस विमान में सोने की दीवारों में नागफनी खीले लगे हुए हैं, स्थान-स्थान पर दिव्य फूलमालाएँ और सुवर्णपत्र से लंबायमान मोतियों की मालाएँ लटक रही हैं जिसमें, तथा जिस विमान की दीवारों में मृग-हिरन के रूप, नाहर के रूप, बलद के रूप, घोड़े के रूप, मगरमच्छ, भारंड पक्षी, गरुड़, मयूर आदि के रूप, सर्प के रूप, किन्नर देवों के रूप, कस्तुरी मृग के रूप, शार्दूल सिंह के रूप, हाथी के रूप, वनलता, पद्मलता आदि के रूप चित्रकारी में हैं, जिस विमान में नाटक हो रहे हैं, उस नाटक में जो बाजे बज रहे हैं, उनके शब्द से गुंजित वह विमान है। उस विमान में मेघगर्जना सरीखा देवदुंदुभी का शब्द हो रहा है। इससे मालूम होता है कि वह शब्द सर्वत्र छा गया है। उस विमान में अगर, कुन्दरु, शिलारस आदि के धूप की मघमघायमान सुगंध फैल रही है। उस विमान में देवों के योग्य सदा उद्योत हो रहा है। देवों के योग्य, सर्वदा सात सुखों का निवासरूप ऐसा देवविमान त्रिशलामाता ने बारहवें सपने में देखा। तेरहवें स्वप्न में रत्नों की राशि देखी। 1. पुलकरत्न, 2. वज्ररत्न, 3. नीलरत्न, 4. शशांकरत्न, 5. कर्केतकरत्न, 6. लोहितरत्न,. 7. मरकतरत्न, 8. प्रवालरत्न, 9. स्फटिकरत्न, 10. सौगंधिकरत्न, 11. हंसगर्भरत्न, 12. मसारगल्लरत्न, 13. अंजनरत्न, 14. चंद्रप्रभरत्न, ऐसे