________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (85) तो वह उदय में आने पर श्री अरिहंतादिक नीचकुल में आयें भी सही, पर उनका उस नीच कुल में योनिमार्ग से जन्म नहीं होता। और ये भगवान श्री महावीरस्वामी जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में ब्राह्मणकुंड गाँव में ऋषभदत्त ब्राह्मण की भार्या देवानन्दा ब्राह्मणी की कोख में उत्पन्न हुए हैं। इसलिए अतीत, अनागत और वर्तमान इन तीनों कालों में जब जो इन्द्र होता है, उसका यह आचार है कि श्री अरिहंतादिक यदि नीच कुल में आ कर उत्पन्न हों, तो उन्हें उग्रादि उच्च कुलों में ले जा कर रख देना। इसलिए हे देवानुप्रिय ! तुम जाओ और भगवान श्री महावीरस्वामी को ब्राह्मणकुंडग्राम नगर में ऋषभदत्त ब्राह्मण की भार्या देवानन्दा की कोख में से उठा कर क्षत्रियकुंड नगर में सिद्धार्थ क्षत्रिय राजा की भार्या त्रिशला क्षत्रियाणी की कोख में गर्भरूप में रख दो। यह मेरी आज्ञा तत्काल पूरी कर के वापस लौटाओ। अर्थात् यह काम कर के मुझसे आ कर कहो कि आपकी जो आज्ञा थी, वह काम मैं पूरा कर आया हूँ। . यहाँ कोई प्रश्न करे कि इन्द्र महाराज को यही विचार क्यों आया कि देवानन्दा की कोख से अपहरण कर के त्रिशला रानी की कोख में संक्रमण किया जाये? क्योंकि उस समय में अन्य भी श्रेणिकप्रमुख बड़े बड़े राजा थे। उन्हें तो याद नहीं किया और सिद्धार्थ जो सामान्य राजा था; उसे याद किया। इसका क्या कारण है? इसका उत्तर यह है कि सब जीवों के अपने अपने भाग्य (कर्म) के अनुसार देवों को भी कार्य करने की बुद्धि उत्पन्न होती है। कर्म से उपरान्त करने की शक्ति देवों में भी नहीं है। यहाँ भी पूर्वभव में त्रिशलारानी का जीव देवरानी था और देवानन्दा का जीव जेठानी था। दोनों एक ही घर में रहती थी। परन्तु कषाय महाबलवान हैं। यदि जीव भला करने की चाहना करे, तो भी कषाय बुरा कर डालते हैं। अब लोभ के कारण जेठानी ने देवरानी का रत्नकरंडक चुरा लिया। देवरानी ने खोजा, पर मिला नहीं। तब दोनों में आपस में खूब बोलचाल हुई; तो भी जेठानी ने रत्नकरंडक नहीं लौटाया। इसके प्रभाव से कर्मबंधन हुआ। वह कर्म देवानन्दा के उदय में आया। वह त्रिशला की देनदार थी। इस कारण