________________ (91) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध पर पैर रखते .ही नीचे चला जाये ऐसे निखारदार अतलस के पटकूल वस्त्र से वह शय्या ढंकी हुई है। वह शुभ मच्छरदानी से रचित रजरक्षा के लाल रमणीय सुकोमल वस्त्रों से ढंकी हुई है। अर्क के फल में रहे हुए कपास तथा मक्खन के समान उस शय्या का स्पर्श है। शुभ सुगंधित चूर्ण तथा फूल जिस पर बिछाये हुए हैं, ऐसी वह शय्या है। उस शय्या पर मध्यरात्रि के अवसर में त्रिशला क्षत्रियाणी सोयी हुई थी। उस समय वह गजवृषभादि चौदह स्वप्न देख कर जाग गयी। त्रिशला क्षत्रियाणी ने चौदह स्वप्नों में से पहले स्वप्न में हाथी देखा। वह हाथी कैसा है? चार दाँतवाला है, बहुत ऊँचा है, जैसे मेघ के छींटे सफेद होते हैं, वैसा सफेद है। तथा जैसा मोती का हार, क्षीरसमुद्र का पानी, चन्द्रमा की किरणें, पानी के कण और रूपा का पर्वत होता है, वैसा सफेद है। उस हाथी के कुंभस्थल से मद झरता है। इस कारण से उसके कपोल के पास भौरे गुंजारव कर रहे हैं। वह इन्द्र के ऐरावत जितना बड़ा दीखता है। वह हाथी मेघ के समान गंभीर शब्दों से गर्जना कर रहा है। ऐसा शभ उत्तम, सब लक्षणों से सहित, विशाल उदरवाला हाथी पहले सपने में त्रिशला क्षत्रियाणी ने देखा। दूसरे स्वप्न में त्रिशला क्षत्रियाणी ने वृषभ देखा। वह वृषभ कैसा है? सफेद कमल के समूह सरीखा श्वेत है। तथा अपने शरीर की कान्ति से सब दिशाओं में उद्योत करने वाला है। उसके कंधे की थभी सब शोभाओं के समूह से सुशोभित है। उसके शरीर में पतले केश हैं। वे केश मानो तेल से चुपड़े हुए हों, ऐसे हैं। उसका शरीर बहुत सुन्दर और स्थिर है। जहाँ जैसा अंग चाहिये, वहाँ वैसा अंग है। याने जहाँ पतला अंग शोभा देता है, वहाँ पतला है और जहाँ मोटा अंग शोभा देता है, वहाँ मोटा अंग है। उसके दृढ़ गोल, शोभायमान, मलरहित, तेलादि से चुपड़े हुए तीक्ष्ण ऐसे दो सींग हैं। तथा मोती सरीखे उजले एक समान सुशोभित उसके दाँत हैं। ऐसा वृषभ मानो अनेक मंगलों का मुख है। उसे दूसरे सपने में त्रिशला ने देखा। .. तीसरे स्वप्न में त्रिशलारानी ने सिंह देखा। वह सिंह कैसा है? मोती