________________ (90) 'श्री कल्पसूत्र-बालावबोध नक्षत्र में चन्द्रमा का योग होने पर पीड़ा रहित रखा गया। उस काल में उस समय में भगवान तीन ज्ञानसहित आ कर उत्पन्न हुए। मेरा यहाँ से संहरण किया जायेगा, ऐसा भगवान जानते थे। पर संहरण का समय सूक्ष्म होने से उसे वे जानते नहीं थे। और संहरण करने के बाद वे यह जानते थे कि मेरा संहरण किया गया। जिस रात में श्रमण भगवंत श्री महावीरस्वामी को देवानन्दा की कोख से उठा कर त्रिशला क्षत्रियाणी की कोख में रखा गया, उस रात्रि में देवानन्दा ब्राह्मणी को अपनी सकोमल शय्या में सोते हुए और कुछ जागते हुए यह स्वप्न आया कि मेरे महामंगलकारी चौदह स्वप्न त्रिशला क्षत्रियाणी ने खींच लिये हैं अर्थात् हरण कर लिये हैं। यह सपना देख कर वह जाग गयी। जिस रात्रि में श्रमण भगवन्त श्री महावीरस्वामी को देवानंदा की कोख में से उठा कर वासिष्ठ गोत्रवाली त्रिशला क्षत्रियाणी की कोख में रखा गया, उस समय वह शय्या में सोयी हुई थी। उस शय्या का स्वरूप कहते हैं- प्रथम जिसका स्वरूप कहा नहीं जा सकता ऐसा निवास का स्थान याने घर है। वह घर कैसा है? तो कहते हैं कि उस घर का मध्य याने दीवारों का भीतरी भाग चित्रों से चित्रित है और दीवारों का बाहरी भाग घिस कर सफेद चमकदार बनाया हुआ है। वह घर ऐसा है कि उसमें ऊपरी भाग चित्रों से सुशोभित है और जमीन का भाग याने फर्श मणिरत्नों के उद्योत जैसा है। इस कारण उस घर में सब अंधकार का नाश हो गया है। वहाँ नित्य उद्योत रहता है। जहाँ भूमि पर अनेक मांडणे मांडे हुए हैं, ऐसा आंगन है। उस आंगन में सरस सुगंधित पाँच वर्ण के पुष्पपुंज रखे हुए हैं। वे फूलों की रचना सहित हैं। तथा वह कृष्णागरु शुभ कुन्दरु शिलारस के धूप से मघमघायमान होने के कारण मनोहर है। वहाँ सुंगधित चूर्ण की सुगंध है। और जिसका वर्णन न किया जा सके ऐसी पुण्यवान के योग्य शय्या है। उस शय्या में शरीर के अनुपात में दोनों ओर दो तकिये रखे हुए हैं। दो तरफ गालमसूरीये रखे हैं। वह दोनों ओर ऊँची है और मध्य में गहरी है। जैसे गंगा नदी की रेत में पैर रखने पर वह नीचे जाती है, वैसे ही जिस