________________ (38) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध सेवा-शुश्रूषा नहीं की। यह देख कर मरीचि ने मन में सोचा कि यदि मेरा रोग मिट जाये और मैं अच्छा हो जाऊँ, तो एक शिष्य बनाऊँ; जिससे रोगादिक उत्पन्न होने पर वह मेरी वैयावच्च करने के काम आ सके। फिर उसने यह निर्धारित कर लिया। कुछ दिन बाद उसका रोग मिट गया और उसके शरीर में शाता हुई। उसे सुख-चैन मिला। ____ एक दिन कोई कपिल नामक राजपुत्र मरीचि के पास आया। उसने धर्मोपदेश सुना। फिर प्रतिबोधित हो कर वह मरीचि से कहने लगा कि मुझे दीक्षा दो। यह सुन कर मरीचि ने कहा कि श्री ऋषभदेवस्वामी के पास जा कर दीक्षा लो। तब कपिल राजपुत्र श्री ऋषभदेवजी के समवसरण में गया। वहाँ भगवान को समवसरण में बिराजमान देख कर वह पुनः मरीचि के पास आया और बोला कि श्री ऋषभदेवजी तो राजलीला भोगते हैं: इसलिए उनके पास तो धर्म कुछ भी नहीं है। पर तुम्हारे पास कुछ धर्म है या नहीं? यह वचन सुन कर मरीचि ने उससे यथार्थ कहा, तो भी बहुलकर्मीपने के कारण उसने नहीं माना। तब मरीचि ने कषायसहित मतिभ्रंश से, मिथ्यात्वोदय के योग से, शिष्य के लोभ से अपना धर्म स्थापन करने के लिए विचार किया कि यह मेरे योग्य है। यह सोच कर वह बोला कि हे कपिल! कुछ जैन धर्म मेरे पास भी है। इसलिए तू सुखपूर्वक दीक्षा ले। मैं तुझे दीक्षा दूंगा। इस तरह अपने स्वार्थ के लिए उसने कपिल को दीक्षा दी। यह उत्सूत्र भाषण किया। फिर इस कर्म की आलोचना और प्रतिक्रमण नहीं किया। इस कारण से एक कोड़ाकोड़ी सागरोपम संसार में परिभ्रमण करने से संबंधित कर्म उपार्जन किया। इसके बाद मरीचि अनुक्रम से अपनी चौरासी लाख पूर्व की आयु भोग कर समाधि-मरण प्राप्त कर के।।३।। चौथे भव में पाँचवें ब्रह्म देवलोक में दस सागरोपम की आयु वाले देवरूप में उत्पन्न हुआ / / 4 / / वहाँ की आयु पूर्ण कर, च्यव कर के पाँचवें भव में कोल्लाग सन्निवेश में अस्सी लाख पूर्व की आयुवाला कौशिक नामक विप्र हुआ। वहाँ भी अन्त में तापसी दीक्षा ग्रहण कर आयु पूर्ण कर मृत्यु के पश्चात् बहुत काल तक