________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (55) दातार, धर्म का उपदेश देने वाले, धर्म के नायक, धर्म में सारथीसमान - जैसे सारथी रथ को शुद्ध मार्ग में ले जाता है, वैसे भगवान धर्ममार्ग से भ्रष्ट लोगों को धर्ममार्ग में ले जाते हैं। इस पर मेघकुमार का दृष्टान्त कहते हैंमेघकुमार की कथा पुत्रः श्रेणिकधारिण्योः, श्रुत्वा वीर विभोगिरः। प्रबुद्धोऽष्टौ प्रियास्त्यक्त्वा, मेघो दीक्षामुपाददे // 1 // राजगृही नगरी में श्रेणिक राजा की धारिणी रानी की कोख में मेघकुमार पुत्ररूप में उत्पन्न हुआ। उस समय गर्भ के प्रभाव से रानी को ऐसा दोहद हुआ कि वर्षाकाल में हम राजा तथा रानी दोनों हाथी पर बैठ कर वन में जा कर क्रीड़ा करें। उसका दोहद अभयकुमार ने पूर्व भव से संबंधित देव का आराधन कर के संपूर्ण किया। फिर नौ मास पश्चात् पुत्रजन्म हुआ। उसका जन्म महोत्सव कर के स्वजन- परिवार को भोजन करा के मेघकुमार नाम रखा। अनुक्रम से वह यौवन अवस्था को प्राप्त हआ। तब पिता ने आठ कन्याओं के साथ उसका विवाह किया। फिर वह उनके साथ विषयसुख भोगते हुए जीवन बिताने लगा। ऐसे समय में राजगृही नगरी में श्री महावीर का समवसरण लगा। श्रेणिकादि सब लोग उन्हें वन्दन करने गये। उनके साथ मेघकुमार भी गया। वहाँ भगवान की देशना सुन कर प्रतिबोध प्राप्त कर के उसने आठों कन्याओं का त्याग किया। फिर माता-पिता से आज्ञा ले कर दीक्षा ग्रहण की। फिर भगवान ने ग्रहण, आसेवना, साधु का आचार सिखाने के लिए उसे स्थविरों को सौंपा। रात के समय संथारा करने के समय अनुक्रम से सब साधुओं के बाद मेघकुमार ऋषि का संथारा आया। वहाँ साधु लघुशंका निवारण के लिए उठे, तब मेघकुमार को बार बार उनके पैरों की ठोकर लगी। इससे एक क्षणभर भी उसे नींद नहीं आयी। वह धूल से भर गया। पूरी रात जागता रहा। फिर उसने विचार किया कि कहाँ मेरी सुखशय्या और कहाँ यह भूमि पर लोटना! और फिर एक रात में कितना उपसर्ग हुआ! यह कष्ट मैं कितने काल तक सहन करूँ? इसलिए यह दीक्षा तो