________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (73) द्रौपदी हमें सौंप जाओ। तब पद्मनाभ बोला कि मैं तुम्हें वापस देने के लिए द्रौपदी. नहीं लाया हूँ। मैं तो मेरी ताकत से लाया हूँ। इसलिए तुम तुम्हारे स्वामी से जा कर कह दो कि तुम्हें युद्ध करना हो तो सुख से करो। मैं भी क्षत्रिय हूँ। यह कह कर उसने दूत को अपमानित कर के निकाल दिया। दूत ने जा कर श्री कृष्ण के आगे सारी बात प्रकट की। श्री कृष्ण ने जान लिया कि यह असाध्य रोग औषधि के बिना नहीं मिटेगा। इसलिए वे युद्ध करने के लिए तैयार हुए। पद्मनाभ भी सेना ले कर लड़ने के लिए सामने आया। तब पांडवों ने श्रीकृष्ण से कहा कि हम इसके साथ युद्ध करेंगे। पर यदि हम हार जायें, तो आप मदद करना। तब श्री कृष्ण ने कहा कि तुम महान योद्धा हो, पर तुम्हारी ऐसी वाणी सुन कर लगता है कि जीतना तुम्हारे लिए कठिन होगा। तो भी पांडव श्री कृष्ण की आज्ञा ले कर युद्ध करने गये। पद्मनाभ ने भी बड़ा लश्कर ले कर पांडवों के साथ युद्ध किया। भवितव्यता के योग से पांडव हार गये और भागते हुए उन्होंने सिंहनाद किया। . . - सिंहनाद सुन कर पांडवों को हारा जान कर अकेले श्री कृष्ण पद्मनाभ की सेना का मथन करने लगे। उनके धनुष्य के टंकारव से ही पद्मनाभ की सारी सेना भाग गयी और स्वयं पद्मनाभ भी भाग कर नगर में घुस गया। फिर उसने नगर के दरवाजे बन्द करवा दिये। तब श्री कृष्ण ने नरसिंह रूप धारण कर के लात मार कर अमरकंका नगरी का किला तोड़ डाला। सारा नगर काँपने लगा। बहुत सारे महल गिर गये। श्री कृष्ण का ऐसा पराक्रम देख कर पद्मनाभ राजा भयभीत हो कर द्रौपदी की शरण में आया और कहने लगा कि हे सती! तू मेरी रक्षा कर। तब द्रौपदी बोली कि हे कंगाल! मैंने तुझसे पहले ही कहा था कि मेरे पीछे श्रीकृष्णादिक अनेक बलवान राजा मदद करने वाले हैं; पर तू नहीं माना। अब भी यदि तू जीने की इच्छा रखता हो; तो स्त्रीवेश पहन कर मुख में तिनका ले कर मेरे पीछे बैठ जा। यदि इतना मेरा कहा करेगा; तो मैं तुझे उनके पाँव लगवा दूंगी। क्योंकि श्री कृष्ण सत्पुरुष हैं। उनके आगे जो झुक जाता है, उसे वे मारते नहीं है।