________________ (75) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध किया। वे उसमें ऐसे बोले कि हे मित्र ! हम बहुत दूर तक समुद्र लांघ गये हैं ; इसलिए अब वापस लौटा नहीं जा सकेगा। तुम हम पर कृपादृष्टि बनाये रखना। इतना कह कर वे आगे बढ़ गये। फिर कपिल वासुदेव ने पद्मनाभ के पास जा कर पूछा कि तेरी इस नगरी के गढ-मढ-कोट क्यों गिर गये? तब पद्मनाभ ने कहा कि जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र का वासुदेव यहाँ मेरी राजधानी लेने आया था। उसके साथ मेरा घमासान युद्ध हुआ। उसने ये गढ़ादि तोड़ डाले हैं। तब कपिल वासुदेव ने कहा कि अरे अन्यायी ! मेरे सामने तू झूठ बोलता है? यह कह कर बहुत तिरस्कार कर उसे देश से निकाल दिया। फिर उसके पुत्र को राजगद्दी पर बिठा कर कपिल अपने स्थान पर गया। फिर श्री कृष्ण पांडवों सहित समुद्र पार कर पांडवों से बोले कि मैं लवणाधिप सुस्थित देव से मिल कर आता हूँ, तब तक तुम लोग नावों से गंगा नदी पार कर फिर एक जन के साथ नाव तुरन्त भेज देना। पांडवों ने द्रौपदी सहित नाव में बैठ कर गंगा नदी पार की। फिर सोचा कि देखें तो सही कि श्री कृष्ण स्वयं अकेले गंगा नदी उतर आते हैं या नहीं। ऐसा निश्चय कर के उन्होंने नाव नहीं भेजी। वहाँ श्री कृष्ण ने बहुत देर तक इंतजार किया, पर नाव नहीं आयी। तब उन्होंने मन में जाना कि लगता है, पांडव डूब गये हैं। यह विचार कर चार भुजाएँ बना कर एक हाथ में सारथी सहित रथ उठाया, एक हाथ में शस्त्र रखे, एक हाथ से घोड़े को पकड़ा और एक हाथ से गंगा नदी में तैरने लगे। गंगा नदी साढ़े बासठ योजन चौड़ी है। जब उसके मध्यभाग में आये; तब श्री कृष्ण बहुत थक गये। उस समय गंगा देवी ने सहायता कर के मध्य में उनके लिए स्थान दिया। वहाँ कुछ समय तक विश्राम ले कर फिर अपनी भुजाओं से गंगा नदी पार कर तट पर आये। ___ वहाँ आ कर देखा तो पांडव नाव सहित बैठे बैठे हँस रहे थे। तब श्री कृष्ण ने रोष पूर्वक पांडवों से पूछा कि अरे दुष्टो ! तुमने नाव वापस क्यों नहीं भेजी। तब पांडव बोले कि तुम्हारी बल-परीक्षा करने के लिए नहीं