________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध भेजी। इस पर श्रीकृष्ण बोले कि अरे ! मैंने दो लाख योजन समुद्र पार कर के जिस पद्मनाभ से तुम भागे थे; उसे जीत कर तुम्हें द्रौपदी ला कर दे दी; उस समय क्या तुमने मेरी शक्ति नहीं देखी, जो अब मेरा बल देखने बैठे? यह कह कर क्रोध कर पाँचों पांडवों को मारने के लिए लोहदंड उठाया। फिर दया ला कर सोचा कि इससे बड़ा अनर्थ हो जायेगा। यह सोच कर पाँचों पांडवों के रथ तोड़ कर चूर्ण कर दिये और फिर कहा कि जाओ रे पापियो ! अब मेरी नजर में मत आना और मेरे देश में भी मत रहना। यह कह कर उन्होंने पाँचों पांडवों को देशनिकाला दे दिया। जहाँ रथ तोड़े थे, वहाँ रथमर्दन कोट बना। ___फिर श्रीकृष्ण अपनी सेना लेकर द्वारिका गये और पांडव भी द्रौपदी को ले कर सेना सहित हस्तिनागपुर गये। वहाँ जा कर कुंतीजी से देशनिकाले की बात कही। तब कुंतीजी ने द्वारिका जा कर मीठे वचनों से श्री कृष्ण को संतुष्ट किया। फिर पांडवों को बुला कर श्री कृष्ण के पाँव लगवाया। फिर श्री कृष्ण ने उन्हें आज्ञा दी कि जहाँ मैंने तुम्हारे रथ तोड़े थे, वहाँ तुम लोग पांडवरथनूपुर बसा कर रहो। फिर पांडव वहाँ श्रीकृष्णजी की सेवा करते हुए रहे। अन्त में पांडुसेन नामक अपने पुत्र को राज्यगद्दी पर बिठा कर पाँचों पांडव और द्रौपदी ने दीक्षा ग्रहण की। फिर छट्ठ-अट्ठमादिक तप कर के, चौदह पूर्व पढ़ कर वे पाँचों पांडव श्री शत्रुजय तीर्थ पर मोक्ष गये। और द्रौपदी भी ग्यारह अंग पढ़ कर महीने की संलेखना धारण कर पाँचवें ब्रह्म देवलोक में गयी। वहाँ से. च्यव कर वह मोक्ष प्राप्त करेगी। इस तरह जंबूद्वीप का वासुदेव धातकीखंड में नहीं जाता, पर गया। यह पाँचवाँ अच्छेरा जानना। कई आचार्य ऐसा भी कहते हैं कि दो वासुदेव के शंख से शंख नहीं मिलते और यहाँ शंख से शंख मिले। इसलिए यह भी अच्छेरा जानना। अब छठा अच्छेरा कहते हैं- युगलिक मरण प्राप्त कर नरक में नहीं जाते; पर हरि और हरिणी ये दोनों युगलिक मर कर नरक में गये। इसलिए यह अच्छेरा हुआ। यथा