________________ (64) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध मिथिला नगरी में कुंभ राजा की प्रभावती रानी की कोख में आ कर मल्लीकुमारी के रूप में उत्पन्न हुआ। उस समय माता ने चौदह सपने देखे। आश्विन सुदि एकादशी के दिन वे पुत्री रूप में जन्मे। अनुक्रम से उन्हें यौवन अवस्था प्राप्त हुई। फिर अवधिज्ञान से अपने छह मित्र अलग अलग स्थानों में उत्पन्न हुए देख कर उन्हें प्रतिबोध करने के लिए अशोक वाटिका में रत्नजटित घर बनवाया। उसमें छह दरवाजे करवाये। उस घर में अपने रूप के समान रत्नजटित सोने की एक पुतली करवायी। फिर मल्लीकुमारी जब भोजन करती, तब उस रत्न की पुतली के सिर पर बने हुए द्वार में ऊपर से एक एक कौर डालती जाती। फिर उस पर ढक्कन लगा देती। इस प्रकार वह हमेशा करती। ____एक बार अयोध्या नगरी के सुप्रतिबद्ध राजा ने यक्ष के मन्दिर में पूजा रचायी। वहाँ फूलमाला देख कर उसने दूत से पूछा कि तुमने फूल का ऐसा श्रीदाम कहीं देखा है? तब दूत बोला कि हे राजन् ! मल्लीकुमारी बहुत चतुर व रूपवती है। वह जैसा फूल का श्रीदाम बनाती है, उसके लाखवें अंश में भी यह श्रीदाम नहीं है। अब पूर्वभव के प्रेम से सुप्रतिबद्ध राजा ने मल्लीकुमारी की याचना के लिए कुंभ राजा के पास दूत भेजा और कहलवाया कि तुम्हारी बेटी का विवाह मेरे साथ करो। इति प्रथम दूत // 1 // एक बार चंपा नगरी के अरहन्नक प्रमुख व्यापारी जहाजों में माल भर कर द्वीपान्तर में गंभीरपत्तन की ओर चलें। उस समय इन्द्र महाराज अपनी सभा में अरहन्नक श्रावक की प्रशंसा करने लगे कि धन्य है अरहन्नक को। आज भरतक्षेत्र में उसके समान दृढ़ अन्य कोई श्रावक नहीं है। इन्द्र के वचन सुन कर एक मिथ्यात्वी देवता ने विश्वास न होने के कारण अरहन्नक के पास जा कर समुद्र में बड़ा उत्पात किया। यह देख कर अरहन्नक सागारी अनशन कर निश्चल मन से श्री वीतरागदेव का स्मरण करने लगा। उस देवता ने उसे बहुत चलायमान किया और कहा कि तू श्री वीतराग देव का स्मरण छोड़ कर हरिहरादिक देवों का स्मरण करे; तो मैं