________________ 'श्री कल्पसूत्र-बालावबोध सुन कर अपने अपराध की क्षमायाचना कर मूलरूप धारण कर हाथी शान्त हुआ। यह इन्द्र महाराज के पूर्वभव से संबंधित कार्तिक सेठ की कथा कही। शक्रेन्द्र के स्वाभाविक तो दो आँखें हैं, पर पाँच सौ देव उस इन्द्र का काम करने वाले हैं। उन पाँच सौ देवों की हजार आँखें उसके काम आती हैं; इसलिए उसका नाम सहस्राक्ष है। महामेघ उसके वश में है। इसलिए उसका नाम मघवा भी है। पाक नामक दैत्य को उसने सजा दी थी; इसलिए उसका नाम पाकशासन भी है। ऐसा शक्रेन्द्र दक्षिणार्द्ध लोक का स्वामी, ऐरावत जिसका वाहन है, सुरों का इन्द्र, बत्तीस लाख विमानों का मालिक, रजरहित स्वच्छ निर्मल वस्त्र धारण करने वाला, लंबायमान माला, मुकुट, सुवर्णकुंडल से घिसे जाने वाले गाल हैं जिसके तथा महान ऋद्धि, महान यश, महान कान्ति, महान माहात्म्य, महान सुख, महान बल है जिसका, लंबी पुष्पमाला धारण करने से देदीप्यमान है शरीर जिसका, ऐसा इन्द्र सौधर्म देवलोक में सौधर्मावतंसक विमान में सौधर्मसभा में शक्र नामक सिंहासन पर बिराजमान, बत्तीस लाख विमानों में बसने वाले देव, चौरासी लाख सामानिक देव, तैंतीस त्रायस्त्रिंशक गुरुस्थानीय देव तथा सोम, यम, वरुण और कुबेर ये चार लोकपाल देव, सोलह हजार देवियों के परिवार सहित आठ अग्रमहीषियाँ, तीन परिषद, सात कटक, सात कटक के स्वामी, प्रत्येक दिशा में चौरासी चौरासी हजार गिनते चारों दिशाओं में कुल तीन लाख छत्तीस हजार आत्मरक्षाकारक देव तथा अन्य भी बहुत से सौधर्म देवलोक में बसने वाले देव और देवियाँ उनका रक्षक, अग्रेसर, नायक, पोषक, सब को अपनी आज्ञा मनवाते हुए, सेनापतित्व करते हुए, स्वयं पालन करते हुए तथा अन्यों से पालन करवाते हुए तथा उच्च स्वर सहित नाटक-गीत, वाद्य वीणा, करताल और अन्य भी बहुत से वाद्य जैसे कि मृदंग, पटह प्रमुख वाद्यों के शब्दों से सहित दिव्य देवों से संबंधित भोगों का उपभोग करते हुए समययापन करता है। ऐसे समय में इस प्रत्यक्ष जंबूद्वीप नामक द्वीप को विस्तीर्ण महान अवधिज्ञान से देखते हुए विचरण करता है। उस काल में उस समय में श्रमण भगवंत श्री महावीरस्वामी को