________________ ___श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (59) कर के सिंहासन पर पूर्व दिशा की ओर मुख कर के बैठा। तब शक्रन्द्र के मन में ऐसा विचार उत्पन्न हुआशक्रन्द्र के मन का संकल्प और दस अच्छेरे ___ श्री अरिहंत भगवंत अथवा चक्रवर्ती अथवा वासुदेव अथवा बलदेव आदि उत्तम पुरुष हैं। वे अन्तकुल याने क्षुद्र जाति में, प्रान्तकुल याने अधमाचारी के कुल में, अल्प परिवार वाले तुच्छ कुल में, निर्धन याने दरिद्रीकुल में, अदातार याने कृपण के कुल में, चारणप्रमुख भिखारी के कुल में तथा ब्राह्मण के कुल में आये, आते हैं तथा आयेंगे; निश्चय से यह बात पूर्व में हुई नहीं है, वर्तमान में होती नहीं है और आगामी काल में होगी भी नहीं। याने कि ये शलाकापुरुष निश्चय से पूर्वोक्त अन्तकुलादि में आये भी नहीं, आते भी नहीं और आयेंगे भी नहीं। ये पूर्वोक्त अरिहंतादि शलाकापुरुष तो निश्चय से श्री ऋषभदेवजी ने जिसे आरक्षक के रूप में रखा, उसे उग्रकुल कहते हैं, उस कुल में, जिसे गुरुस्थान पर रखा उसे भोगकुल कहते हैं, उस कुल में, जिसे मित्रस्थान पर रखा उसे राजन्यकुल कहते हैं, उस कुल में, जिसे प्रजालोक के रूप में स्थापन किया उसे क्षत्रियकुल कहते हैं, उस कुल में, इक्ष्वाकुकुल में, हरिवर्ष क्षेत्र के युगलिक का जो परिवार उसे हरिवंश कुल कहते हैं, उस कुल में तथा ऐसे अन्य भी तथा प्रकार के विशुद्ध जाति के उत्तम कुल में आये हैं, आते हैं और आयेंगे। यह मर्यादा है। तथापि ये श्री महावीरस्वामी ब्राह्मण के कुल में आ कर उत्पन्न हुए यह लोक में अच्छेराभूत बात हुई। याने अनन्त उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल जब बीत जाता है, तब किसी काल में ऐसे अच्छेरे होते हैं। वैसे ही इस अवसर्पिणी में भी ऐसे दस अच्छेरे याने आश्चर्यकारक बातें हुई हैं। इस प्रकार इन्द्र महाराज विचार करते हैं। ____अब इस अवसर्पिणी में जो दस अच्छेरे हुए, उनका व्याख्यान करते हैं- प्रथम किसी भी तीर्थंकर को केवलज्ञान उत्पन्न होने के बाद उपसर्ग नहीं होता, पर श्री महावीरदेव को केवलज्ञान उत्पन्न होने के बाद गोशालक ने उपसर्ग किया, सो इस प्रकार से