________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (49) होता है, वह पुरुष विद्यावान यशस्वी होता है तथा उजले पक्ष में उसका जन्म जानना। जिसके नेत्र रक्त होते हैं, उसकी निकटता स्त्री नहीं छोड़ती तथा जिसके नेत्र पीले होते हैं, उसे धन नहीं छोड़ता। जिसकी भुजाएँ दीर्घ होती हैं, उसे ईश्वरत्व होता है। जिसका शरीर दृढ़ होता है, उसे सुख अधिक होता है। जिसके हाथ-पैर में कमल, छत्र, अंकुश, शंख, मत्स्य प्रमुख होते हैं; वह पुरुष महान लक्षणवान होता है। तथा जिसके नख लाल होते हैं, उसे धन का सुख अधिक होता है। जिसके नख उजले होते हैं, वह भिक्षुक होता है। जिसके नख रूखे होते हैं, वह अनाचारी होता है। शरीर में मुख प्रधान है, मुख में नासिका प्रधान है और नासिका में नेत्र प्रधान हैं। इसलिए जिसके जैसे नेत्र होते हैं, उसका वैसा ही शील याने आचार भी होता है तथा जैसी नासिका होती है, वैसा ही आर्यत्व भी होता है। जैसा रूप होता है, वैसा वित्त होता है और जैसा शील होता है, वैसे गुण होते हैं। कहा भी है कि: यथा नेत्रं तथा शीलं, यथा नासा तथा ऽऽर्जवम। यथा रूपं तथा वित्तं, यथा शीलं तथा गुणाः / / 1 / / अब व्यंजन का स्वरूप कहते हैं- जन्म के पश्चात् जो शरीर में प्रकट होते हैं, उन्हें व्यंजन कहते हैं। जैसे कि मसा, तिल, लहसुन इत्यादि। ये सब व्यंजन जानना। ये पुरुष के दाहिनी ओर हों, तो शुभ जानना और स्त्री के बायीं ओर हो, तो शुभ जानना। . अब गुण का स्वरूप कहते हैं- जिसमें सौभाग्य, उदारता, शान्ति, गंभीरता और धैर्यता आदि होते हैं, ये सब उसके गुण जानना। . अब मानोन्मान का स्वरूप कहते हैं- पुरुष-परिमाण पानी से भरी हुई कुंडी में पच्चीस साल के पुरुष को बिठाना। उस पुरुष के बैठने से यदि एक द्रोण भार पानी कुंडी से बाहर निकले, तो उस पुरुष को मानोपंत याने सप्रमाण जानना और यदि तराजू में तौलने से उस पुरुष का तौल अर्द्धभार परिमाण हो, तो उसे उन्मानोपेत पुरुष जानना। .. यहाँ तौल की वार्ता के प्रसंग में भार का परिमाण बताते हैं- छह