________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (39) संसार परिभ्रमण कर के / / 5 / / छठे भव में थूणापुरी में पुष्पमित्र नामक ब्राह्मण हुआ। वहाँ त्रिदंडी तापस हो कर बहत्तर लाख पूर्व की आयु भोग कर / / 6 / / सातवें भव में पहले सौधर्म देवलोक में मध्यम आयुवाले देवरूप में उत्पन्न हुआ।।७।। वहाँ से च्यव कर आठवें भव में चैत्य सन्निवेश में साठ लाख पूर्व की आयु वाला अग्निद्योति नामक ब्राह्मण हुआ। वहाँ भी त्रिदंडी तापस हो कर मृत्यु के बाद / / 8 / / नौवें भव में दूसरे ईशान देवलोक में मध्यम आयुवाला देव हुआ।।९।। वहाँ से च्यव कर दसवें भव में मन्दिराख्य सन्निवेश में छप्पन्न लाख पूर्व की आयु वाला अग्निभूति नामक ब्राह्मण हुआ। वहाँ भी त्रिदंडी संन्यास ग्रहण कर मृत्यु के बाद / / 10 / / ग्यारहवें भव में सनत्कुमार नामक देवलोक में मध्यम आयु वाले देवरूप में उत्पन्न हुआ।।११।। वहाँ से च्यव कर बारहवें भव में श्वेतांबिका नगरी में चवालीस लाख पूर्व की आयु वाला भारद्वाज नामक ब्राह्मण हुआ। अन्त में त्रिदंडी संन्यास ग्रहण कर के वहाँ से मृत्यु के बाद / / 12 / / तेरहवें भव में चौथे माहेन्द्र नामक देवलोक में मध्यम आयु वाले देवरूप में उत्पन्न हुआ।।१३।। वहाँ से च्यव कर बहुत संसारभ्रमण कर पुनः चौदहवें भव में राजगृही नगरी में चौंतीस लाख पूर्व की आयु वाला थावर नामक ब्राह्मण हुआ। वहाँ त्रिदंडी संन्यास अंगीकार कर मृत्यु के बाद / / 14 / / पन्द्रहवें भव में पाँचवें ब्रह्म देवलोक में मध्यम आयु वाले देवरूप में उत्पन्न हुआ / / 15 / / .. वहाँ से च्यव कर बहुत संसारभ्रमण कर सोलहवें भव में- राजगृही में चित्रनन्दी नामक राजा था। उसकी रानी का नाम प्रियंगु था। उसके एक पुत्र था विशाखनन्दी। चित्रनन्दी राजा के छोटे भाई का नाम विशाखभूति था। वह युवराज था। उसकी धारिणी नामक रानी की कोख में मरीचि का जीव आ कर पुत्ररूप में उत्पन्न हुआ। माता-पिता ने उसका नाम विश्वभूति रखा। अनुक्रम से उसने युवावस्था प्राप्त की, तब पिता ने उसका विवाह किया। वह अपनी पत्नी को साथ ले कर बगीचे में क्रीडा के लिए जाया करता था। एक दिन चित्रनन्दी राजा के पुत्र विशाखनन्दी ने विश्वभूति को वहाँ क्रीडा