________________ (42) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध वस्त्राभूषण पहना कर उसे राजा के पास भेजा। उसने सोचा था कि इस बड़ी कन्या को यौवनवय प्राप्त देख कर राजा किसी कुलवान राजकुमार के साथ इसका ब्याह कर देगा। पर राजा तो अपनी स्वरूपवती कन्या को अपने सामने देख कर काम पीड़ित हो गया और स्वयं ही अपनी कन्या के साथ विवाह करने की इच्छा करने लगा। फिर लोगों में अपमान न हो, इसलिए सभा में बैठे हुए लोगों से उसने पूछा कि हे बन्धुओ! इस संसार में जो सब से अच्छी चीज होती है, वह किसकी कही जाती है? तब सभाजनों ने कहा कि जो उत्तम चीज होती है, वह आपकी ही कही जाती है। इस पर राजा ने कहा कि तुम्हारे मुँह से जो शब्द निकला है, वह निश्चय ही सत्य है। इसलिए यह सर्वोत्कृष्ट कन्यारत्न मैं किसी अन्य को नहीं दूंगा। इसके साथ मैं ही विवाह करूंगा। यह कह कर उसने अपनी पुत्री के साथ अपना विवाह किया और उसके साथ सांसारिक सुख भोगने लगा। ऐसा करते एक दिन उस विश्वभूति का जीव देवलोक से च्यव कर मृगावती की कोख में उत्पन्न हुआ। उस समय मृगावती ने सात स्वप्न देखे। फिर नौ महीने पूरे होने के बाद पुत्र का जन्म हुआ। तब राजा ने बड़ा महोत्सव कर के अपने पुत्र का नाम त्रिपृष्ठ रखा। अनुक्रम से वह बालक बड़ा हुआ। उस अवसर पर शंखपुर नगर के पास तुंगी पर्वत की गुफा में विशाखनन्दी का जीव सिंह के रूप में उत्पन्न हुआ। उस समय अश्वग्रीव नामक प्रतिवासुदेव का शालि का खेत उस पर्वत के नजदीक था। उस शालि के खेत के रखवाले को वह सिंह मार डालता था। उस समय वह अश्वग्रीव राजा अपने सेवक राजाओं को प्रतिवर्ष क्रम से हुक्म भेज कर खेत की चौकी करने के लिए भेजता था। इस तरह एक बार क्रम के अनुसार प्रजापति राजा को चौकी करने का हुक्म प्राप्त हुआ। तब उस खेत की रक्षा के लिए राजा स्वयं जाने लगा। उस समय त्रिपृष्ठ ने उसे रोक लिया और वह स्वयं अपने अचल नामक भाई- जो गौतमस्वामी का जीव है और इस भव में बलदेव होने वाला है; के साथ खेत की रखवाली के