________________ (32) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध हो श्री आचार्य भगवंतों को। 'नमो उवज्झायाणं' - नमस्कार हो श्री उपाध्याय भगवंतों को। 'नमो लोए सव्वसाहूणं' - नमस्कार हो ढाई द्वीपरूप मनुष्यलोक में रहे हुए सब साधु भगवंतों को। 'एसो पंच नमुक्कारों'- इन पाँचों को किया गया नमस्कार- 'सव्व पावप्पणासणो' - सब पापों का प्रकर्षता से नाश करने वाला है। 'मंगलाणं च सव्वेसिं'- और सब मंगलों में- 'पढमं हवइ मंगलं' - प्रथम याने मुख्य मंगल है। संक्षिप्त वाचना से वीर प्रभु के पाँच कल्याणक उस काल में याने चाथे आरे के अन्त में, उस समय में याने उस अवसर पर श्रमण भगवन्त श्री महावीरस्वामी के पाँच कल्याणक उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में हुए। सो कहते हैं- एक उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में देवलोक से च्यव कर देवानन्दाजी की कोख में, गर्भ में आ कर उत्पन्न हुए। दूसरा उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में देवानन्दाजी की कोख से उठा कर श्री त्रिशलादेवी की कोख में उन्हें संक्रमित किया गया। तीसरा उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में उनका जन्म हुआ। चौथा उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में गृहस्थ जीवन त्याग कर उन्होंने साधु जीवन अंगीकार किया। पाँचवाँ उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में अनन्त अनुपम- जिसे कोई दूसरी उपमा लग नहीं सकती तथा जिसका कहीं भी व्याघात नहीं होता; ऐसा श्रेष्ठ केवलज्ञान तथा केवलदर्शन भगवान को उत्पन्न हुआ। ये पाँच कल्याणक उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में हुए। तथा स्वाति नक्षत्र में भगवन्त ने निर्वाण अर्थात् मोक्षपद प्राप्त किया। भगवंत के ये पाँच कल्याणक सामान्य से कहे। विस्तृत वाचना और छह आरों का स्वरूप अब विस्तार से वर्णन करते हैं- उस काल में उस समय में श्रमण भगवान श्री महावीरस्वामी ने ग्रीष्मकाल का चौथा महीना-आठवाँ पखवाड़िया अर्थात् आषाढ़ सुदि छठ की रात को महाविजय पुष्पोत्तर- प्रधान पुंडरीक नामक दसवें देवलोक के विमान में बीस सागरोपम की आयु का क्षय कर के, देवभव का त्याग कर के, देव से संबंधित शरीर छोड़ कर अन्तररहित