________________ ___ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (21) व्यापार न करे। इसलिए साधु को भी चातुर्मास में एक ही स्थान पर रहना चाहिये। उस चातुर्मास में पर्युषण पर्व आने पर मांगलिक के लिए कल्पसूत्र का अवश्य वाचन करना चाहिये। पयुषण पर्व की सब पर्यों में उत्कृष्टता दिखाते हैं। जैसे- 1. मंत्रों में पंच परमेष्ठी मंत्र, 2. तीर्थों में शत्रुजय तीर्थ, 3. दानों में अभयदान, 4. गुणों में विनय गुण, 5. व्रतों में ब्रह्मचर्य व्रत, 6. संतोष में नियम, 7. तपस्याओं में इन्द्रियदमन, 8. दर्शनों में जैनदर्शन, 9. क्षीर में गोक्षीर, 10. जल में गंगाजल, 11. पट में हीर, 12. वस्त्रों में चीर, 13. अलंकारों में चूडामणि, 14. ज्योत्स्ना में निशामणि, 15. तुरंगों में पंचवल्ल किशोर, 16. नृत्य कलावन्तों में मोर, 17. गजों में ऐरावत, 18. दैत्यों में अहिरावण, 19. वनों में नन्दनवन, 20. काष्ठों में चन्दन, 21. तेजवन्तों में आदित्य, 22. साहसिकों में विक्रमादित्य, 23. न्यायवन्तों में श्रीराम, 24. रूपवन्तों में काम, 25. सतियों में सीता, 26. शास्त्रों में गीता, 27. बाजों में भंभा, 28. स्त्रियों में रंभा, 29. सुगंधों में कस्तूरी, 30. वस्तुओं में तेज, 31. पुण्यश्लोकों में राजा नल, 32. फूलों में सहस्रदल कमल, 33. धनुर्धरों में अर्जुन, 34. इंन्द्रियों में नयन, 35. धातुओं में सुवर्ण, 36. दाताओं में कर्ण, 37. गायों में कामधेनु, 38. स्निग्धों में घृत, 39. पेय में अमृत, 40 ज्ञानों में केवलज्ञान और 41. सुखों में मोक्ष सुख सर्वश्रेष्ठ है; वैसे ही सब पर्वो में पर्युषण पर्व को महान जानना चाहिये। यह भाद्रपद सुदि पंचमी जैसे श्री जिनशासन में माननीय है, वैसे ही परशासन में भी यह ऋषिपंचमी का दिन माननीय है। ऋषिपंचमी का संबंध बताते हैं 'पुष्पवती नगरी में नीलकंठ नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम सोमा था। इन्द्रदेव उनका पुत्र था, जो जन्म से ही दरिद्री था। कुछ काल पश्चात् इन्द्रदेव के माता-पिता मर कर उसी घर में पिता बैल हुआ और माता कुतिया हुई। इतने में श्राद्ध पक्ष आ गया। उस समय घर में धन न होने से वह सोचने लगा कि मैं अपने माता-पिता का श्राद्ध दिन कैसे सम्हालूँ? फिर उसने अपना बैल