________________ (20) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध हों, 8. जहाँ औषधि सुलभ उपलब्ध हो, 9. जहाँ श्रावकों के घर धनधान्य से भरपूर हों, उन्हें किसी बात की चिन्ता न हो, 10. राजा अतिभद्रक हो, 11. वह साधुओं की बहुत भक्ति करता हो, 12. जहाँ भिक्षा सुलभ मिलती हो, 13. जहाँ सज्झाय पठन-पाठनादिक सुखपूर्वक हो सकते हों। इन तेरह गुणों से युक्त गाँव में साधु को चातुर्मास करना चाहिये। यदि इतने गुण न मिलें, तो भी जघन्य से चार गुण तो अवश्य देखने चाहिये। वे चार गुण लिखते हैं- 1. स्थंडिल भूमि बहुत अच्छी, शुद्ध और प्रासुक हो. 2. जहाँ सज्झाय-ध्यान सुखपूर्वक हो सके ऐसा निवास स्थान हो, 3. जहाँ श्री जिनमंदिर हो, 4. जहाँ गोचरी अच्छी तरह मिलती हो। ये चार गुण क्षेत्र के देख कर चातुर्मास करना चाहिये। इस तरह तेरह गुण उत्कृष्ट से और चार गुण जघन्य से बताये। पाँच से बारह गुण तक सब मध्यम गुण जानना। ऐसा क्षेत्र देख कर साधु वहाँ चातुर्मास करे। साधुजन पृथ्वीपीठ पर नवकल्पी विहार करते हैं। वे अनेक तीर्थयात्राएँ करते हुए, गाँव गाँव उपदेश देते हुए, मिथ्यात्व में पड़े हुए अनेक भव्य जीवों का उद्धार करते हुए विचरते हैं। जब चातुर्मास आता है, तब धरामंडल पर सजलधारा से वर्षा होती है। इससे कदम कदम पर पानी का प्रवाह चलता है, कोमल किसलय फूटते हैं और जगह जगह अनेक प्रकार के जीव जन्तु उत्पन्न होते हैं। इस कारण से जीवयतना करने वाले चारित्रवान को वर्षाकाल में विहार नहीं करना चाहिये। उसे एक ही स्थान पर रहना चाहिये और अनेक प्रकार के घोर अभिग्रह धारण करने चाहिये; क्योंकि साधु के तो बीस बीसा-शत प्रतिशत दया होती है। श्रीकृष्ण महाराजा जैसे सवा बीसा दया का पालन करने वाले श्रावकों ने भी चातुर्मास में सोलह हजार राजाओं को सभा में पधारने के लिए 'ना' कहा था और स्वयं भी सभा में नहीं गये थे। क्योंकि बरसात में कीड़ी, कुंथुआ आदि अनेक जीवों की हिंसा होती है। यह जान कर श्रीकृष्ण ने सन्देश भेजा कि ठाकुरजी शयन कर रहे हैं। तब से देवशयनी एकादशी लोक में प्रसिद्ध हुई। इस प्रकार शुद्ध श्रावक भी वर्षाकाल में पाप जान कर देशान्तर से