________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (25) दी। इससे झोंपड़ी जल गयी और वह लड़का भी शुभध्यान में जल मरा। उसने अपने अट्ठम तप ध्यान के प्रभाव से यहाँ निःसन्तान श्रीकान्त सेठ के घर जन्म लिया। फिर जातिस्मरण ज्ञान प्राप्त कर इसने अट्ठम तप किया। इससे भूख के कारण यह मूछित हो गया था; पर जीवित था। फिर भी लोगों ने इसे मृत जान कर जमीन में गाड़ दिया था। मैंने यहाँ आ कर अमृतसंचार कर के इसकी मूर्छा दूर की और इसे सचेत किया। हे राजन्! यह महापुरुष है और इसी भव में मोक्ष पाने वाला है। इसलिए इसे खूब यत्नपूर्वक रखना। यह तुम पर भी बहुत बड़ा उपकार करने वाला होगा। इतना कह कर अपने गले का हार बालक के गले में डाल कर धरणेन्द्र अपने स्थान पर गया। . ____ फिर राजा उस बालक को हाथी पर बिठा कर बड़े ठाट-बाट से घर ले आया। परिवारजनों ने सेठ का मृत कार्य कर के उस बालक का नाम नागकेतु रखा। वह बचपन से ही जितेन्द्रिय परम श्रावक हुआ। वह अष्टमीचतुर्दशी को उपवास, चातुर्मासिक का छट्ठ और पर्युषण का अट्ठम करता था और नित्य जिनपूजा तथा साधुसेवा करता था। एक बार विजयसेन राजा ने किसी निरपराधी पुरुष पर चोरी का झूठा कलंक लगा कर उसे मरवा डाला। वह मर कर व्यन्तर देव हुआ। नगर का विनाश करने के लिए वह वहाँ आ कर नगर जितनी लंबी चौड़ी शिला आकाश में निर्माण कर लोगों को डराने लगा। उसने राजा को लात मार कर नीचे गिरा दिया। राजा के मुँह से खून निकलने लगा। यह कृत्य देख कर नागकेतु ने सोचा कि मेरे जीवित रहते श्रीसंघ का और श्रीजिनचैत्य का विनाश मैं कैसे देख सकता हूँ? यह सोच कर मन में जीवदया ला कर वह प्रासाद पर चढ़ गया। फिर उसने अपने हाथों पर गिरती हुई शिला को थाम लिया। वह व्यन्तर नागकेतु के तप की शक्ति सहन न कर सका। इसलिए अपनी मायानिर्मित शिला का संहरण कर नागकेतु के चरणों में गिर पड़ा। फिर नागकेतु के कहने से राजा को भला चंगा कर के अपने स्थान पर चला गया। इससे नागकेतु की बहुत मान्यता हुई। राजा ने भी उसका