________________ (24) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध तप के प्रभाव से धरणेन्द्र का आसन चलायमान हुआ। अवधिज्ञान से सब वृत्तान्त जान कर वह वहाँ आ पहुँचा। उसने बालक को अमृत-संचार से सचेत किया। फिर वह ब्राह्मण का रूप बना कर सेठ के घर के बाहर खड़ा रहा। उसने राजसेवकों को धन लेने से रोका। तब राजा के पास जा कर उन्होंने शिकायत की कि कोई ब्राह्मण हमें धन लेने से रोकता है। तब राजा स्वयं शीघ्रता से वहाँ जा पहुँचा। उसने ब्राह्मण से कहा- हमारे राज्य में यह परंपरा है कि जो मनुष्य निःसन्तान मर जाता है, उसका धन राजा ले जाता है। फिर तुम क्यों रोक रहे हो? तब ब्राह्मण ने कहा- हे राजन्! सेठ का पुत्र जीवित है। तब राजा ने पूछा- वहा कहाँ है? उस समय धरणेन्द्र ने उस बालक को जमीन में से जीवित निकाल कर बताया। यह देख कर सब लोग चकित रह गये। फिर राजा ने पूछा- आप कौन हैं? यह बालक कौन है? आपने यह बात कैसे जानी? इस पर ब्राह्मण बोला- मैं नागराज धरणेन्द्र हूँ। तेले के प्रभाव से मैं इसकी सहायता करने आया हूँ। तब राजा ने कहा- इस बालक ने जन्मते ही अट्ठम तप क्यों किया? इस पर धरणेन्द्र ने कहा- हे सजन्! यह बालक पूर्वजन्म में एक वणिक का पुत्र था। बचपन में ही इसकी माता चल बसी। तब इसके पिता ने दूसरा विवाह किया। सौतेली माता उस बालक को छोटे से अपराध के लिए भी बहुत सताती थी, उस पर क्रोध करती थी और उसे मार-पीट कर बहुत दुःख देती थी। इस तरह वह लड़का हमेशा दुःख पाता था। एक बार उसने अपने श्रावक मित्र से अपनी दुःख भरी बात कही। तब मित्र ने कहा कि हे भाई! तूने पूर्व भव में धर्म नहीं किया; इसलिए अब त दुःख पा रहा है। यह उपदेश सुन कर उसने यथाशक्ति तप करना शुरु किया। फिर वह अष्टमी-चतुर्दशी के दिन उपवास और अन्य दिनों में नवकारसी, पोरसी प्रमुख तप करने लगा। इस तरह अनुक्रम से पर्युषण पर्व आये; तब उसने अट्ठम तप करने का निश्चय किया। फिर वह रात को घास की झोंपड़ी में जा कर सो गया। इतने में वहाँ नजदीक में आग लगी। उस अवसर से लाभ उठा कर सौतेली माता ने उस झोंपड़ी पर आग फेंक