________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (23) याने भाद्रपद सुदि पंचमी के दिन बैल का जोता हुआ धान्य मत खाना, चउविहार उपवास करना और यदि बिना खाये न रहा जा सके, तो दस मुट्ठी उड़द के बाकुले खाना। ऐसा करने से तेरे माता-पिता की सद्गति होगी। फिर उस ब्राह्मण ने वैसा ही किया। उस दिन से लोगों में ऋषिपंचमी का नाम प्रसिद्ध हुआ। यह ऋषिपंचमी के पर्व से संबंधित कथा कही। श्री पर्युषण पर्व आने पर महोत्सवपूर्वक जो मनुष्य तेले की तपस्या में अर्थात् अट्ठम तप कर के श्री कल्पसूत्र का श्रवण करता है; वह नागकेतु के समान केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष सुख पाता है। कल्पसूत्र-श्रवण पर नागकेतु की कथा कहते हैं चन्द्रकान्ता नगरी में विजयसेन राजा राज करता था। उस नगरी में श्रीकान्त नामक सेठ रहता था। उसके श्रीसखी नामक पत्नी थी। अनेक उपाय करने के बाद-देवीदेवताओं की मनौतियाँ मानने के बाद उसे एक पुत्र हुआ। अनुक्रम से उस पुत्र के. पालन-पोषण में कुछ काल व्यतीत हुआ। इतने में पर्युषण पर्व के दिन आये। उस समय उस बालक के आसपास बैठे हुए लोग आपस में कहने लगे कि हम संवत्सरी का तेला याने अट्ठम तप करेंगे। यह बात सुन कर उस बालक को जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ। उसके योग से उसने अपना पिछला भव देखा। इस कारण से शिशु अवस्था में ही उसने अपने मन में अट्ठम तप करने का निश्चय कर के स्तनपान करना छोड़ दिया। इससे उसका शरीर कुम्हला गया। मरणतुल्य अवस्था दिखाई देने लगी। पुत्र की ऐसी हालत देख कर उसके माता-पिता बड़े दुःखी हुए। उन्होंने अनेक प्रकार के औषधोपचार किये; तो भी बालक ने स्तनपान नहीं किया। फिर भूख के योग से बालक मूछित हो गया। पुत्र को मृतवत् देख कर पिता को हृदयाघात हुआ। इससे उसकी मृत्यु हो गयी। इसी तरह उसकी माता भी चल बसी। बालक को मृत जान कर जातिवालों ने उसे जमीन में गाड़ दिया। फिर निःसन्तान श्रीकान्त सेठ की मृत्यु के समाचार जान कर वहाँ के राजा ने सेठ की संपत्ति लाने के लिए अपने अनुचर भेजे। उस समय अट्ठम