________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (17) देख कर वह लड़का वहाँ जा कर बोला- 'तुम्हारे घर ऐसा काम कभी न हो।' यह सुन कर विवाह वालों ने गुस्से में आ कर उसे मारा-पीटा। तब लड़के ने कोटवाल द्वारा सिखायी गयी बात बतायी। फिर उन लोगों ने उसे मूर्ख जान कर उससे कहा'जब बहुत से लोग दिखाई दें, तो उनसे कहना कि तुम्हारे लिए ऐसा हमेशा हो। उनकी बात गाँठ बाँध कर लड़का आगे बढ़ा। रास्ते में किसी देश के राजा की मृत्यु हो जाने के कारण लोग उसकी मैयत (वैकुंठी) ले जा रहे थे। यह देख कर उसने कहा- 'तुम्हारे लिए सदा ऐसा ही हो।' इस कारण से वहाँ भी लोगों ने उसे मारा और मूर्ख जान कर छोड़ दिया। इस तरह भटकते-भटकते कई दिन बाद वह पुनः घर लौटा। यह श्री वीर भगवान के साधुओं पर वक्र-जड़ का दूसरा दृष्टांत जानना। ___अब मध्य के बाईस तीर्थंकरों के साधु जो ऋजु और प्राज्ञ है; उनसे संबंधित दृष्टान्त कहते हैं- कोई एक अजितनाथ भगवान का साधु स्थंडिल से बहुत देर से लौटा। तब गुरु ने उससे विलंब का कारण पूछा। उस समय ऋजुपने से उसने कहा कि नट का नाटक देखने के लिए मैं खड़ा रहा था। तब गुरु ने कहा कि साधु को नाटक देखना नहीं चाहिये। इस पर उसने 'मिच्छा मि दुक्कडं' दे कर कहा कि अब आगे से कभी भी नाटक देखने के लिए खड़ा नहीं रहूँगा। फिर एक बार किसी दिन वह बाहर गया। रास्ते में नर्तकी नाच रही थी। यह देख कर उसने बुद्धि से विचार किया कि गुरु ने मुझे नट का नाटक देखने को मना किया है; और नर्तकी तो उससे भी अधिक विशेष राग का कारण है। इसलिए मुझे इसे सर्वथा देखना ही नहीं कल्पता। यह सोच कर वह वापस लौटा। यह ऋजु और प्राज्ञ का दृष्टान्त कहा। इस प्रकार ये जो दृष्टान्त बताये गये हैं, सो सब साधुओं के आश्रय से नहीं जानना; परन्तु किसी एक साधु के आश्रय से जानना। ... आज के समय में मनुष्य वक्र और जड़ हैं, तो इसके अनुसार आज पाँचवें आरे में चारित्रवान साधु नहीं हैं; ऐसा भी नहीं कहना। कदापि अनाभोग से अतिचार दोष बहुत लगते हों; ऐसे भी साधु आज के समय में हैं; क्योंकि साधु के बिना धर्म नहीं रहता। इसीलिए व्यवहारभाष्य में कहा है कि श्री भगवंत के द्वारा प्ररूपित शास्त्र की जो सत्य प्ररूपणा करता है; उसे भी साधु कहना चाहिये। तथा