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( म ) १२ बोल पृष्ठ ३७० से ३७१ तक। सूत्र ना० १० नाम ( अनु० द्वा०)
१३ बोल पृष्ठ ३७१ से ३७३ तक। श्रुत नाम सिद्धान्त नो छ (पन्न० प० २३ उ०२) इति श्रीजयाचार्य कृते भ्रमविधंसने सूत्रपठनाऽधिकारानुक्रमणिका समाप्त ।
निरवद्य क्रियाऽधिकारः।
१ बोल पृष्ठ ३७४ से ३७५ तक । पुण्य बंधे तिहां निर्जरा री नियमा छै ( भग० श० ७ उ० १०) - २ बोल पृष्ठ ३७६ से ३७६ तक । • माझा माहिली करणी सूं पुण्य नो बन्ध कह्यो ( उत्त० अ० २६)
३ बोल पृष्ठ ३७६ से ३७७ तक। धर्म कथाई शुभ कर्म नो बन्ध कह्यो ( उत्त० अ० २६)
४ बोल पृष्ठ ३७७ से ३७७ तक । गुरु नी व्यावच कियां तीर्थङ्कर नाम गोत्र कर्म नो बन्ध कयो (उत्त० अ० २६)
५ बोल पृष्ठ ३७७ से ३७८ तक। श्रामण माहण में चन्दनादि करी शुभदीर्घ आयुषानो बन्ध कह्यो ( भग स०५ उ० ६)
६ बोल पृष्ठ ३७८ से ३७६ तक। १० प्रकारे कल्याण करी कर्मबन्ध कह्यो (ठा० ठा० १०)
७ बोल पृष्ठ ३७६ से ३८० तक। १८ पाप सेच्या कर्कश वेदनी कर्म बन्धे ( भग० श० ७ उ०६)
८ बोल पृष्ठ ३८० से ३८१ तक। मार्कश वेदनी आज्ञा माहिली करणी थी बंधे (भग० श० ६ उ०७)