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अष्टाङ्गहृदये।
जो कुछ व्याख्यान कियाजायगा उस सबमें दीर्घजीवनकी अभिलाषा करनेवालोंको आयुआयुको स्थिर करने की इच्छा करने वालोंके वैदिक शास्त्रोंके उपदेशों पर अत्यन्त आदर रखलिये हितकारी उपायोंका वर्णन कियाजायगा | ना उचितहै अर्थात् उसमें कहेहुए उपदेशों ( ३ ) अथ शब्द मंगलसूचकहै, कहाभी है को अच्छी तरह समझकर उनके अनुसार व्यव" ओंकारश्चाथशब्दश्चद्वावेतौ ब्रह्मणःपुरा । हार करनेसे आयु बढतीहे और आयुके बढने गण्डौ भित्वाविनिर्यातौ तेनेमोमंगलौ स्मृतौ " से धर्मअर्थ और ( तादाविक तथा आत्यन्तिओंकार और अथ ये दोनों शब्द प्रथमही ब- क ) दोनों मुखोंकी प्राप्ति होतीहै । मके कंठको भेदकर निकलेहैं इसलिये ये दोनों अब आयुर्वेदका गौरव प्रतिपादनके लिये मंगलसूचक हैं । ग्रन्थकारने अपने ग्रन्थके आगमशुद्धि दिखाते हैं :--- प्रारंभमें अथ शब्दका प्रयोग इस ग्रन्थके पढ़ने आयुर्वेद की उत्पत्ति । पढ़ानेवालोंकी मंगलकामनाके लिये कियाहै। ब्रह्मास्मृत्वायुषो वेदं प्रजापतिमजिग्रहत्। ___ आत्रेय धन्वन्तरि आदि महर्षियोंका नाम सोश्विनौ तौ सहवाक्षं सोत्रिपुत्रादिकालेनेसे ग्रन्थकारका यह प्रयोजनहै कि जो कुछ न्मुनीन् ॥ ३ ॥ तेऽभिवेशादिकांस्ततुधृथ इस ग्रन्थमें कहागयाहै वह आगमत्रागाण्यसे तंत्राणितेनिरे। कहागयाहै, लोक पर अनुकंपा करके जो कुछ । अर्थ-प्रथमही ब्रह्माने आयुर्वेदका स्मरण उक्त महर्षियोंने कहाहै उसीका क्रममात्र बद- करके दक्षप्रजापतिको समझाया, दक्षने अश्विलकर इसग्रन्थमें वर्णन कियाहै अपनी ओर नीकुमारोंको, अश्विन कुमारने इन्द्रको, इन्द्रने अएक मात्राभी न्यूनाधिक नहीं की है और न त्रिकेपुत्रधन्वन्तरि, निमि, काश्यपादिको पढाया कोई बात कपोलकल्पित है।
इन अत्रिपुत्रोंने अग्निवेशादि छ:मुनियोंको पदाया ग्रन्थकारने उक्त वास्यमें प्रथम मंगलाच- और इन छ: मुनियों ने अपने अपने नामस अग्निरण करके प्रस्तुत अध्यायका विषय और प्र- वेश, भेड, जातूनार्ण पराशर, हारीत और स्तुत विषयमें आत्रेयादि ऋषियोंका प्रमाण ये क्षारपाणि नामकी जुदी जुदी संहिता रची। तीन बातें दिखाइहैं । इन तीन बातोंको पुरस्सर | इस ग्रन्थके बनानेका कारण । करके ग्रन्थके अधिकारियोंका ध्यान आकर्षित तेभ्योऽतिविप्रकीर्णेभ्यः प्रायः सारतकरनेके लिये कहताहै ।
रोच्चयः ॥ ४॥ क्रियतेऽष्टांगहृदयनाति ___ आयुर्वेद जाननेका कारण । संक्षेपविस्तरम् । आयुः कामयमानेनधर्मार्थसुखसाधनम् । अर्थ-ऊपर कहेहुए बड़े २ ग्रन्थोंके विआयुर्वेदोपदेशेषु विधेयः परमादरः ॥२॥ द्यमानहोते इस प्रन्थके बनानेका यह कारण है। ___ अर्थ-धर्मअर्थ और सुख इन तीनकी प्राप्ति । कि उक्त ग्रन्थोंका विषय बहुत भिन्न२ है एक आयुसे होतीहै । इस आयुकी इच्छा करनेवाले | बात एक ग्रन्थमें लिखीहै तो दूसरी बात दूसरे अर्थात् धर्म अर्थ और सुखकी प्राप्तिके निमित्त । ग्रन्थमें लिखीहै जैसे शल्यचिकित्सा सुश्रुतमें
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