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अहिंसा-समद्धि से सम्पन्न देश ही सेवनीय
{51} एकपादस्थिते धर्मे यत्र क्वचन गामिनि॥ कथं कर्तव्यमस्माभिर्भगवंस्तद् वदस्व नः। यत्र वेदाश्च यज्ञाश्च तपः सत्यं दमस्तथा। अहिंसाधर्मसंयुक्ताः प्रचरेयुः सुरोत्तमाः। स वो देशः सेवितव्यो मा वोऽधर्मः पदा स्पृशेत्॥
(म.भा.12/340/87-89) ___ (देवों व ऋषियों का भगवान से प्रश्न-) भगवन् ! जब कलियुग में सर्वत्र धर्म का है एक ही चरण अवशिष्ट रहेगा, तब हमें क्या करना होगा? यह बताइये। (भगवान का * उत्तर-) जहां अहिंसा-धर्म के साथ वेद, यज्ञ, तप, सत्य, इन्द्रियसंयम प्रचलित हों, उसी
देश का तुम्हें सेवन करना चाहिये। ऐसा करने से तुम्हें अधर्म अपने एक पैर से भी नहीं छू
सकेगा (अर्थात् कलियुग में वही स्थान, प्रदेश या देश/राष्ट्र निवास-योग्य है जहां अहिंसा * धर्म का आचरण दृष्टिगोचर होता है। ऐसे राष्ट्र में निवास करने से कलियुग के दुष्प्रभाव से
सुरक्षित रहा जा सकता है।)
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अहिंसाः एक सात्त्विक गुण
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अकार्पण्यमसंरम्भः क्षमा धृतिरहिंसता। समता सत्यमानृण्यं मार्दवं ह्रीरचापलम्॥ सर्वभूतदया चैव सत्त्वस्यैते गुणाः स्मृताः॥
(म.भा.12/301/18,20) अकार्पण्य (दीनता का अभाव), असंरम्भ (क्रोध का अभाव), क्षमा, धृति, अहिंसा, समता, सत्य, ऋण से रहित होना, मृदुता, लज्जा, अचंचलता, परोपकार और सम्पूर्ण प्राणियों में # पर दया- ये सब सात्त्विक उत्तम गुण बताये गये हैं।
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EPSEEEEEEEEEEEE वैदिक/ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/14