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___{827} अहिंसा प्रियवादित्वमपैशुन्यमकल्कता॥ सामासिकमिमं धर्मं चातुर्वण्र्येऽब्रवीन्मनुः।
(कू.पु.1/2/68; ग.पु. 1/49/23
में आंशिक परिवर्तन के साथ) मनु महाराज ने चारों वर्गों के लोगों के लिए इन धर्मों का विधान किया है- अहिंसा, प्रियवादिता, अपिशुनता (चुगलखोरी न करना), तथा अस्तेय (चोरी न करना)आदि।
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{828} अहिंसा सत्यमस्तेयं दानं क्षान्तिर्दमः शमः। अकार्पण्यं च शौचं च तपश्च रजनीचर॥ दशाङ्गो राक्षसश्रेष्ठ धर्मोऽसौ सार्ववर्णिकः॥
___ (वा.पु. 14/1-2) अहिंसा, सत्य, अस्तेय, दान, क्षमा, दम, शम, अकृपणता, शौच, तप-ये दशविध # धर्म सभी वर्गों के लिए करणीय माने गए हैं।
{829} अहिंसा सत्यमस्तेयं शौचमिन्द्रिय-निग्रहः। एतं सामासिकं धर्मं चातुर्वण्र्येऽब्रवीन्मनुः॥
(म.स्मृ.-10/63) अहिंसा, सत्य, चोरी न करना, शौच (आन्तरिक स्वच्छता/शुद्धता), इन्द्रियों पर नियन्त्रण- इन्हें चारों वर्गों के लिए आचरणीय धर्म के रूप में मनु ने संक्षेप में बताया है।
{830} क्षमा सत्यं दमः शौचं दानमिन्द्रियसंयमः। अहिंसा गुरुशुश्रूषा तीर्थानुसरणं दया। आर्जवत्वमलोभश्च देवब्राह्मणपूजनम्। अनभ्यसूया च तथा धर्मः सामान्य उच्यते।
__ (वि. स्मृ. वर्णाश्रमवृत्ति धर्म वर्णन) सभी वर्गों के साधारण धर्म हैं-क्षमा, सत्य, दम, शौच, दान, इन्द्रियों का संयम, ई अहिंसा, गुरु की सेवा, तीर्थाटन, दया, आर्जव होना, अलोभ, देवता और ब्राह्मणों की पूजा, म और अनभ्यसूया (निन्दा न करना) आदि।। 第四步步步明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明、 वैिदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/234