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प्रकीर्णकेशे विमुखे ब्राह्मणेऽथ कृताञ्जलौ॥ शरणागते न्यस्तशस्त्रे याचमाने तथाऽर्जुन। अबाणे भ्रष्टकवचे भ्रष्टभग्नायुधे तथा॥ न विमुञ्चन्ति शस्त्राणि शूराः साधुव्रते स्थिताः।
(म.भा. 8/90/111-113) जो केश खोल कर खड़ा हो, युद्ध से मुँह मोड़ चुका हो, ब्राह्मण हो, हाथ जोड़कर शरण में आया हो, हथियार डाल चुका हो, प्राणों की भीख मांगता हो, जिसके बाण, कवच # और दूसरे-दूसरे आयुध नष्ट हो गये हों, ऐसे पुरुष पर उत्तम व्रत का पालन करने वाले शूरवीर शस्त्रों का प्रहार नहीं करते हैं।
{10211 अहो जीवितमाकाक्षेनेदृशो वधमर्हति। सुदुर्लभाः सुपुरुषाः संग्रामेष्वपलायिनः॥ कृतं ममाप्रियं तेन येनायं निहतो मृधे। इति वाचा वदन् हन्तृन् पूजयेत रहोगतः॥ हन्तृणामाहतानां च यत् कुर्युरपराधिनः। क्रोशेद् बाहुं प्रगृह्यापि चिकीर्षन् जनसंग्रहम्॥ एवं सर्वास्ववस्थासु सान्त्वपूर्वं समाचरेत्। प्रियो भवति भूतानां धर्मज्ञो वीतभीनृपः॥
__ (म.भा. 12/102/36-39) 'सभी लोग अपने प्राणों की रक्षा करना चाहते हैं, अतः प्राण-रक्षा चाहने वाले पुरुष * का वध करना उचित नहीं है। संग्राम में पीठ न दिखाने वाले सत्पुरुष इस संसार में अत्यन्त
दुर्लभ हैं। मेरे जिन सैनिकों ने युद्ध में इस श्रेष्ठ वीर का वध किया है, उसके द्वारा मेरा बड़ा है अप्रिय कार्य हुआ है'। शत्रु-पक्ष के सामने वाणी द्वारा इस प्रकार खेद प्रकट करके राजा
एकान्त में जाने पर अपने उन बहादुर सिपाहियों की प्रशंसा करे, जिन्होंने शत्रु पक्ष के प्रमुख के
वीरों का वध किया हो। इसी तरह शत्रुओं को मारने वाले अपने पक्ष के वीरों में से जो के हताहत हुए हों, उनकी हानि के लिये इस प्रकार दुःख प्रकट करे, जैसे अपराधी किया करते है * हैं। जनमत को अपने अनुकूल करने की इच्छा से जिसकी हानि हुई हो, उसकी बांह पकड़ *
कर सहानुभूति प्रकट करते हुए जोर-जोर से रोवे और विलाप करे। इस प्रकार सब अवस्थाओं में जो सान्त्वनापूर्ण बर्ताव करता है, वह धर्मज्ञ राजा सब लोगों का प्रिय एवं FEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEER [वैदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/300
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