Book Title: Ahimsa Vishvakosh Part 01
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication

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Page 406
________________ कृति और कृतिकार 'दर्शन और जीवन' परिचय-पंक्ति में अंकित नहीं हो सकता। ठीक इसी प्रकार कृति के सर्जक भी परिचय-पक्ति की रेखाओं से ऊपर हैं। उनके द्वारा रचित अनेक ठोस व चिंतन-प्रधान ग्रन्थ देख कर यह स्वत: प्रामाणित होता है कि वे विद्यावाचस्पति गुरुदेव दार्शनिक मुनि हैं। जीवन के व्याख्याता हैं। मुनित्व उनकी सांसे हैं। दर्शन, जीवन और मुनित्व की सम्पूर्ण व्याख्या का जो स्वरूप बनता है तो यह है-श्री सुभद्र मुनि। ___ इनकी दृष्टि परम उदार है, साथ ही सत्यान्वेषक भी। सत्यान्वेषण करते हुए इनकी दृष्टि में पर, पर | नहीं होता। स्व, स्व नहीं होता। स्व-पर का परिबोध नष्ट हो जाना ही मुनित्व का मूलमंत्र है। स्व और पर युगपद हैं। 'पर' रहा तो 'स्व' अस्त्वि में रहता है। 'स्व' रहेगा, तब तक 'पर' मिट नहीं सकता। दर्शन जितना गूढ, जीवन-सा सरस और मुनित्व के आनन्द में रचा है, इनका व्यक्तित्व। यह व्यक्तित्व जितना आकर्षक है उतना ही स्नेहसिक्त भी है। ___ व्यवहार में परम मृदु। आचार में परम निष्ठावान्। विचार में परम उदार। कटुता ने इनकी हृदय-वसुधा पर कभी जन्म नहीं लिया है। इनका सम्पूर्ण जीवन- आचार, दर्शन का व्याख्याता है। प्रस्तुत कृति 'अहिंसा विश्वकोष' इनके विराट् चिंतन एवम् उदात्त भावों की संसूचक तो है ही, विश्व-संस्कृति को इनके मुनित्व का सार्थक योगदान भी है। हिंसा-ग्रस्त वर्तमान वातावरण में यह अहिंसा का प्रासंगिक हस्तक्षेप है। विश्व-शांति एवम् विश्व-मंगल की भविष्य-रेखाएं काल के भाल पर अंकित करने वाला सद्पुरुषार्थ है यह निश्चित है कि इसका सर्वत्र स्वागत मनुष्यत्व के सार की वर्तमान में उपस्थिति प्रमाणित करेगा। -संपादक ISBN 81-7555-088-0 यूनिवर्सिटी पाब्लकशन 7/31, अंसारी रोड, दरियागंज . नई दिल्ली - 110002 97881751550889 //

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