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{985} जयो वैरं प्रसृजति दुःखमास्ते पराजितः।
(म.भा. 5/72/59-60) विजय की प्राप्ति भी चिरस्थायी शत्रुता (के वातारण) की सृष्टि करती है। पराजित पक्ष बड़े दुःख से समय बिताता है।
{986}
न हि वैराणि शाम्यन्ति दीर्घकालधृतान्यपि॥ आख्यातारश्च विद्यन्ते पुमांश्चेद् विद्यते कुले।
(म.भा. 5/72/62-63) दीर्घकाल तक मन में दबाये रखने पर भी वैर की आग सर्वथा बुझ नहीं पाती; क्योंकि यदि कोई भी उस कुल में विद्यमान (जीवित) है, तो उससे पूर्व में घटित वैर बढ़ाने + वाली घटनाओं को बताने वाले बहुत से लोग उसे मिल जाते हैं जिससे वैर की आग पुनः ॥
बढ़ती रहती है।
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{987
न हि वैराग्निरुद्भूतः कर्म चाप्यपराधजम्। शाम्यत्यदग्ध्वा नृपते विना ह्येकतरक्षयात्॥
(म.भा.12/139/46) प्रज्वलित हुई वैर की आग एक पक्ष को दग्ध किये बिना नहीं बुझती है और अपराधजनित कर्म भी एक पक्ष का संहार किये बिना नहीं शान्त होता है।
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दया-दानः राजा का विशिष्ट कर्तव्य
शिव कर्तव्य
.. {988}. . आनृशंस्यं परो धर्मो याचते यत् प्रदीयते। अयाचतः सीदमानान् सर्वोपायैर्निमन्त्रयेत्॥
(म.भा. 13/60/6) याचक को जो दान दिया जाता है, वह दयारूप परम धर्म है, परंतु जो लोग क्लेश + उठा कर भी याचना नहीं करते, उन ब्राह्मणों को प्रत्येक उपाय से अपने पास बुला कर दान
देना चाहिये।
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% % % % विदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/290