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येषां स्वादूनि भोज्यानि समवेक्ष्यन्ति बालकाः। नाश्रन्ति विधिवत तानि किं न पापतरं ततः॥ यदि ते तादृशो राष्ट्र विद्वान् सीदेत् क्षुधा द्विजः। भ्रूणहत्यां च गच्छेथाः कृत्वा पापमिवोत्तमम्॥ धिक् तस्य जीवितं राज्ञो राष्ट्रे यस्यावसीदति। द्विजोऽन्यो वा मनुष्योऽपि शिविराह वचो यथा।
(म.भा. 13/61/27-29) . (भीष्म का युधिष्ठिर को कथन-) जिसके छोटे-छोटे बच्चे स्वादिष्ट भोजन की * ओर तरसती आँखों से देखते हों और वह उन्हें न्यायतः खाने को न मिलता हो, उस पुरुष है के लिए इससे बढ़ कर पाप और क्या हो सकता है? राजन! यदि तुम्हारे राज्य में कोई वैसा # विद्वान् ब्राह्मण भूख से कष्ट पा रहा हो तो तुम्हें भ्रूण-हत्या का पाप लगेगा और कोई बड़ा
भारी पाप करने से मनुष्य की जो दुर्गति होती है, वही तुम्हारी भी होगी। राजा शिवि का | कथन है कि जिस क राज्य में ब्राह्मण या कोई और मनुष्य क्षुधा से पीड़ित हो रहा है, उस * राजा के जीवन को धिक्कार है।
{994} सहस्रम्भरः शुचिजिव्हो अग्निः।
(य.11/36) समाज के अग्रणी नेता को पवित्र जीभ वाला और हजारों का पालन-पोषण करने वाला होना चाहिए।
{995} विकलाङ्गान् प्रव्रजितान् दीनानाथांश्च पालयेत्।
(शु.नी. 3/126) राजा को विकलाङ्ग, संन्यासी, दीन और अनाथ लोगों का पालन करना चाहिये।
SEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE वैदिक/बाह्मण संस्कृति खण्ड/292