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FFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFE ॐ चाहिये। राजन्! अब आप हमें अपना निर्णय बताइये। देवताओं का मत जानकर राजा वसु
ने उन्हीं का पक्ष लेकर कह दिया कि अज' का अर्थ है-छाग (बकरा) , अतः उसी के द्वारा यज्ञ करना चाहिये।
कुपितास्ते ततः सर्वे मुनयः सूर्यवर्चसः॥ ऊचुर्वसं विमानस्थं देवपक्षार्थवादिनम्। सुरपक्षो गृहीतस्ते यस्मात् तस्माद् दिवः पत ॥ अद्यप्रभृति ते राजन्नाकाशे विहता गतिः। अस्मच्छापाभिघातेन महीं भित्त्वा प्रवेक्ष्यसि॥ विरुद्ध वेदसूत्राणामुळं यदि भवेन्नप। वयं विरुद्धवचना यदि तत्र पतामहे। ततस्तस्मिन् मुहूर्तेऽथ राजोपरिचरस्तदा। अधो वै सम्बभूवाशु भूमेर्विवरगो नृप।
(म.भा. 12/337/14-17) [ब्रह्माण्ड पुराण (पूर्व भाग/अनुषंगपाद/29 अ.)
___में भी श्रोक 6-32 तक यही कथा वर्णित है।] ___यह सुनकर वे सभी सूर्य के समान तेजस्वी ऋषि कुपित हो उठे और विमान पर बैठकर देव पक्ष की बात कहने वाले वसु से बोले। तुमने यह जानकर भी कि 'अज' का " अर्थ अन्न है, देवताओं का पक्ष लिया है, इसलिये स्वर्ग से नीचे गिर जाओ। आज से
आकाश में विचरने की तुम्हारी शक्ति नष्ट हो गयी। हमारे शाप के आघात से तुम पृथ्वी को भेद कर पाताल में प्रवेश करोगे। तुमने यदि वेद और सूत्रों के विरुद्ध कहा हो तो हमारा यह शाप अवश्य लागू हो और यदि हम शास्त्रविरुद्ध वचन कहते हों तो हमारा पतन हो जाय।
ऋषियों के इतना कहते ही उसी क्षण राजा उपरिचर आकाश से नीचे आ गये और तत्काल ॐ पृथ्वी के विवर में प्रवेश कर गये।
{928} (महाभारत के अनुगीता पर्व में प्राप्त कथा-)
पुरा शक्रस्य यजतः सर्व ऊचुर्महर्षयः। ऋत्विक्षु कर्मव्यग्रेषु वितते यज्ञकर्मणि॥ हुयमाने तथा वही हो। गुणसमन्विते। देवेष्वाहूयमानेषु स्थितेषु परमर्षिषु ॥ सुप्रतीतैस्तथा विप्रैः स्वागमैः सुस्वरैप। अश्रान्तश्चापि लघुभिरध्वर्युवृषभैस्तथा। आलम्भसमये तस्मिन् गृहीतेषु पशुष्वथ। महर्षयो महाराज बभूवुः कृपयान्विताः॥
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अहिंसा-विश्वकोश/267]