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原名:
{939}
विपरीतस्तामसः स स्यात् सोऽन्ते नरकभाजनः ।
निर्घृणश्च मदोन्मत्तो हिंसकः सत्यवर्जितः ॥
( शु.नी. 1/32 ) सात्त्विक राजा से विपरीत रूप में, तामसी राजा निर्दयी, मदोन्मत्त, हिंसक, सत्यवर्जित होता है और इसी लिए मरने पर वह नरक को जाता है।
{940}
वाक्पारुष्यं न कर्तव्यं दण्डपारुष्यमेव च । परोक्षनिन्दा च तथा वर्जनीया महीक्षिता ॥
(म.पु. 220/10)
राजा को कटुवचन बोलना और कठोर दण्ड देना- ये दोनों ही कर्म नहीं करने चाहियें।
{941}
क्षमते योऽपराधं स शक्तः स दमने क्षमी । क्षमया तु विना भूपो न भात्यखिलसद्गुणैः ॥
( शु.नी. 1/82 )
जो अपराधों को क्षमा करनेवाला क्षमाशील एवं दुष्टों का दमन करनेवाला है, वही शक्तिमान कहलाता है । सम्पूर्ण गुणों से युक्त होने पर भी, राजा यदि क्षमा-रहित होता है, तो उसकी शोभा नहीं होती है ।
{942}
कदापि नोग्रदण्डः स्यात् कटुभाषणतत्परः । भार्या पुत्रोऽप्युद्विजते कटुवाक्यादुग्रदण्डतः॥
( शु.नी. 3/85)
तत्पर नहीं होना उद्विग्न हो उठते हैं।
राजा को कभी भी प्रचण्ड दण्ड देनेवाला एवं कटुभाषण करने में चाहिये, क्योंकि स्त्री तथा पुत्र भी कटुभाषण करने एवं प्रचण्ड दण्ड देने से
{943}
राष्ट्रपीडाकरो राजा नरके वसते चिरम् ।
( अ.पु. 223/7 )
राष्ट्र को पीड़ा पहुँचाने वाला राजा चिरकाल तक नरक में निवास करता है। [वैदिक / ब्राह्मण संस्कृति खण्ड / 276
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