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{957} ग्रामेषु भूपालवरो यः कुर्यादधिकं करम्। स सहस्रकुलो भुंक्ते नरकं कल्पपञ्चसु॥
__ (ना. पु. 1/15/91) ग्राम (आदि) में जो राजा अधिक 'कर' (टैक्स) वसूल करता है, वह हजारों कुलों/पीढ़ियों के साथ पांच कल्पों तक नरक-दुःख भोगता है।
{958} ऊधश्छिन्द्यात् तु यो धेन्वाः क्षीरार्थी न लभेत् पयः। एवं राष्ट्रमयोगेन पीड़ितं न विवर्धते॥
(म.भा. 12/71/16; ग.पु. 1/111/5) जैसे दूध चाहने वाला मनुष्य यदि गाय का थन काट ले तो इससे वह दूध (कदापि) नहीं पा सकता, उसी प्रकार राज्य में रहने वाली प्रजा का अनुचित उपाय से शोषण किया जाय तो उससे राष्ट्र की उन्नति नहीं होती।
हिंसक युद्धः सामान्यतः वर्जित
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कार्याण्युत्तमदण्डसाहसफलान्यायाससाध्यानि ये, प्रीत्या संशमयन्ति नीतिकुशलाः सानैव तै मन्त्रिणः। निःसाराल्पफलानि ये त्वविधिना वाञ्छन्ति दण्डोद्यमैः, तेषां दुर्नयचेष्टितैर्नरपतेरारोप्यते श्रीस्तुलाम्॥
(पं.त. 1/407) ___जो अत्यन्त उग्र दण्ड और साहस युक्त फल वाले कष्ट-साध्य युद्ध जैसे कार्यों को * प्रेम तथा शान्ति (साम और दाम) से शान्त कर देते हैं, वे ही सच्चे मन्त्री होते हैं; और जो के निरर्थक और थोड़े से फलों वाले कार्य को अन्याय (भेद नीति) तथा युद्ध (दण्ड नीति) से ॐ पूरा करना चाहते हैं, उन मन्त्रियों की इस बुरी नीति के कारण राजा की राज्यलक्ष्मी ही खतरे भी 4 में पड़ जाती है।
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विदिक/बाह्मण संस्कृति खण्ड/282