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{960 वर्जनीयं सदा युद्धं राज्यकामेन धीमता। उपायैस्त्रिभिरादानमर्थस्याह बृहस्पतिः॥ सान्त्वेन तु प्रदानेन भेदेन च नराधिप। यदर्थे शक्नुयात् प्राप्तुं तेन तुष्येत पण्डितः॥
(म.भा. 12/69/23-24) जो बुद्धिमान् राजा राज्य का हित चाहे, उसे सदा युद्ध को टालने का ही प्रयत्न करना # चाहिये। बृहस्पतिजी ने साम,दान और भेद-इन तीन उपायों से ही राजा के लिये धन की 9 आय बतायी है। इन उपायों से जो धन प्राप्त किया जा सके, उसी से विद्वान् राजा को संतुष्ट भ होना चाहिये।
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1961} उपायविजयं श्रेष्ठमाहुर्भेदेन मध्यमम्। जघन्य एष विजयो यो युद्धेन विशाम्पते॥
__ (म.भा. 6/3/81) साम-दानरूप उपायों से जो विजय प्राप्त होती है, उसे श्रेष्ठ बताया गया है। भेदनीति * के द्वारा शत्रुसेना में फूट डाल कर जो विजय प्राप्त की जाती है, वह मध्यम है तथा युद्ध के के द्वारा मार-काट मचा कर जो शत्रु को पराजित किया जाता है, वह सब से निम्न श्रेणी की
विजय मानी गई है।
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{962} साम्ना दानेन भेदेन समस्तैरथवा पृथक् । विजेतुं प्रयतेतारीन् न युद्धेन कदाचन ॥
(म.स्मृ.-7/198) (राजा) (1) साम (प्रेम-प्रदर्शन),(2) दान, (3) भेद (शत्रु के राज्यार्थी दायाद या मंत्री आदि को विजय होने पर राज्य आदि देने का लोभ देकर अपने पक्ष में करना)- इन
तीनों उपायों से अथवा इनमें से किसी एक या दो उपायों से, शत्रुओं को जीतने का प्रयत्न ॐ करे, (पहले) युद्ध से जीतने की कदापि चेष्टा न करे।
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अहिंसा कोश/283]