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{933}
धर्ममेव प्रपद्यन्ते न हिंसन्ति परस्परम्। अनुगृह्णन्ति चान्योन्यं यदा रक्षति भूमिपः॥
(म.भा.12/68/33) जब राजा रक्षा करता है, तब सब वर्गों के लोग नाना प्रकार के बड़े-बड़े यज्ञों का अनुष्ठान करते हैं और मनोयोगपूर्वक विद्याध्ययन में लगे रहते हैं।
{934} यानं वस्त्रमलङ्कारान् रत्नानि विविधानि च। हरेयुः सहसा पापा यदि राजा न पालयेत्॥ पतेद् बहुविधं शस्त्रं बहुधा धर्मचारिषु। अधर्मः प्रगृहीतः स्याद् यदि राजा न पालयेत्॥ मातरं पितरं वृद्धमाचार्यमतिथिं गुरुम्। क्लिश्रीयुरपि हिंस्युर्वा यदि राजा न पालयेत्॥ वधबन्धपरिक्लेशो नित्यमर्थवतां भवेत्। ममत्वं च न विन्देयुर्यदि राजा न पालयेत्॥ अन्ताश्चाकाल एव स्युर्लोकोऽयं दस्युसाद् भवेत्। पतेयुर्नरकं घोरं यदि राजा न पालयेत्॥
__ (म.भा.12/68/16-20) यदि राजा प्रजा का पालन न करे तो पापाचारी लुटेरे सहसा आक्रमण करके वाहन, वस्त्र, आभूषण और नाना प्रकार के रत्न लूट ले जाएं। यदि राजा रक्षा न करे तो धर्मात्मा पुरुषों पर बारंबार नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों की मार पड़ें और विवश होकर लोगों को अधर्म का मार्ग ग्रहण करना पड़े। यदि राजा पालन न करे तो दुराचारी मनुष्य माता, पिता, वृद्ध, आचार्य, अतिथि और गुरु को क्लेश पहुंचावें अथवा मार डालें। यदि राजा रक्षा न करे तो धनवानों को प्रतिदिन वध या बन्धन का क्लेश उठाना पड़े और ॥ किसी भी वस्तु को वे अपनी न कह सकें। यदि राजा प्रजा का पालन न करे तो अकाल में ही लोगों की मृत्यु होने लगे, यह समस्त जगत् डाकुओं के अधीन हो जाए और (पाप के कारण) घोर नरक में गिर जाए।
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EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEENA वैिदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/274