Book Title: Ahimsa Vishvakosh Part 01
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication

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Page 307
________________ NEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEme {944} क्षमा वै साधुमायाति न ह्यसाधून्क्षमा सदा। क्षमायाश्चाक्षमायाश्च पार्थ विद्धि प्रयोजनम्॥ विजित्य क्षममाणस्य यशो राज्ञो विवर्धते। महापराधे ह्यप्यस्मिन् विश्वसन्त्यपि शत्रवः॥ मन्यते कर्षयित्वा तु क्षमा साध्वीति शम्बरः। असंतप्तं तु यद् दारु प्रत्येति प्रकृतिं पुनः॥ नैतत् प्रशंसन्त्याचार्याः, न च साधुनिदर्शनम्। अक्रोधेनाविनाशेन, नियन्तव्याः स्वपुत्रवत्॥ (म.भा.12/102/29-32) सत्पुरुषों को सदा क्षमा करना आता है, दुष्टों को नहीं। क्षमा करने और न करने का प्रयोजन बताता हूँ, इसे सुनो और समझो जो राजा शत्रुओं को जीत लेने के बाद, उनके अपराध क्षमा कर देता है, उसका यश बढ़ता है। उसके प्रति महान् अपराध करने पर भी शत्रु उस पर विश्वास करते हैं। शम्बरासुर का मत है कि पहले शत्रु को पीड़ा द्वारा अत्यन्त दुर्बल करके फिर उसके प्रति क्षमा का प्रयोग करना ठीक है, क्योंकि यदि लोहे की टेढ़ी छड़ी को है बिना गर्म किये ही सीधी किया जाय तो वह फिर ज्यों की त्यों हो जाती है। परन्तु आचार्य* गण इस मत की प्रशंसा नहीं करते हैं, क्योंकि यह सज्जन पुरुषों का दृष्टान्त नहीं है। राजा को ' तो चाहिए कि वह पुत्र की. ही भांति अपने शत्रु को भी बिना क्रोध किये ही वश में करे, उसका विनाश न करे। ¥¥¥¥¥¥¥坎坎坎坎妮妮妮妮妮妮妮妮妮妮妮听听听听听听听听听听听听听呢呢呢呢呢呢呢呢垢玩垢玩垢 आदर्श अहिंसक राज्यः रामराज्य {945} सर्वं मुदितमेवासीत् सर्वो धर्मपरोऽभवत्। राममेवानुपश्यन्तो नाभ्यहिंसन् परस्परम्॥ (वा. रामा. 6/128/100) सब लोग सदा प्रसन्न ही रहते थे। सभी धर्मपरायण थे और श्रीराम (के आदर्श क स्वरूप) को ही बारंबार दृष्टि में रखते हुए, वे सभी एक दूसरे की हिंसा (या एक दूसरे से 5 हिंसक व्यवहार) नहीं करते थे। 玩玩玩玩玩玩乐乐玩玩玩玩玩玩玩乐乐听听听听听听玩玩玩乐乐玩玩玩乐乐部 अहिंसा कोश/277]

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