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{837} क्षमा दया च विज्ञानं सत्यं चैव दमः शमः। अध्यात्मनिरतज्ञानमेतद् ब्राह्मणलक्षणम् ॥
(कू.पु. 2/15/27) क्षमा, दया, विज्ञान, सत्य-आचरण, दम (इन्द्रिय-निग्रह), शम (शान्ति), तथा ) * आध्यात्मिक विद्या में लगा हुआ ज्ञान-ये 'ब्राह्मण' के लक्षण/ चिन्ह हैं।
{838} अद्रोहेणैव भूतानामल्पद्रोहेण वा पुनः। या वृत्तिस्तां समास्थाय विप्रो जीवेदनापदि॥
(म.स्मृ. 4/2) सामान्यतः कोई विपत्ति न पड़ी हो, तो ऐसी स्थिति में ब्राह्मण को चाहिए कि वह जीवों को बिना पीड़ित किये अथवा कम से कम पीड़ित करते हुए अपनी जीविका चलावे।
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वेदाभ्यासस्तपो ज्ञानमिन्द्रियाणां च संयमः। अहिंसा गुरुसेवा च निःश्रेयसकरं परम्॥
(म.स्मृ. 12/83) (उपनिषद् के सहित) वेद का अभ्यास, (प्राजापत्य आदि) तप, (ब्रह्मविषयक) ज्ञान, इन्द्रियों का संयम, अहिंसा और गुरुजनों की सेवा-ये ब्राह्मण के लिये श्रेष्ठ मोक्षसाधक छः कर्म हैं।
अहिंसाः और क्षत्रिय वर्ण
{840} पानमक्षाः स्त्रियश्चैव मृगया च यथाक्रमम्। एतत्कष्टतमं विद्याच्चतुष्कं कामजे गणे॥
(म.स्मृ.-7/50) कामजन्य व्यसन-समुदाय में मद्यपान, जूआ, स्त्रियां, और शिकार (आखेट)- इन चारों को (क्षत्रिय राजा)क्रमशः अधिकाधिक कष्टदायक समझे।
अहिंसा कोश/237]