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{885} अहिंसा सत्यमस्तेयं ब्रह्मचर्यापरिग्रहौ। अक्रोधश्चानसूया च प्रोक्ताः संक्षेपतो यमाः॥
(ना. पु. 1/33/75) अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, क्रोध न करना (अर्थात् क्षमा भाव), परदोष दर्शन में प्रवृत्ति न रखना- ये संक्षेप से 'यम' कहे गए हैं।
{886}
अहिंसा-सत्यास्तेय-ब्रह्मच-परिग्रहा यमाः॥
(यो.सू. 2/30) ___ अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह -ये पांच 'यम' (योग साधना के प्राथमिक अंग) हैं।
{887} अहिंसा सत्यमस्तेयं ब्रह्मचर्यापरिग्रहौ । यमाश्च-------------------॥
(अ.पु. 161/19-20, 372/2, +
382/31; ग.पु. 1/218/12) 'यम' पाँच हैं-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह।
{888} आस्ते यम उप याति देवान्।
(अ.4/34/3) जो (अहिंसा, सत्य,अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह रूप) यमों में रहता है, वह देवत्व को प्राप्त होता है।
. {889}
अहिंसा सत्यमस्तेयं ब्रह्मचर्यं दयाऽऽर्जवम्। क्षमा धृतिर्मिताहारः शौचं चेति यमा दश॥
(दे. भा. 7/35/6) अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, दया, ऋजुता (सरलता), क्षमा, धैर्य, परिमित9 भोजन, शौच (शुद्धि)- ये दस 'यम' हैं।
明明明明明弱勇勇馬頭明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明 [वैदिक/बाह्मण संस्कृति खण्ड/252