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{908} छित्त्वाऽधर्ममयं पाशं यदा धर्मेऽभिरण्यते। दत्त्वाऽभयकृतं दानं तदा सिद्धिमवाप्नुते॥
(म.भा.12/298/4) जो मनुष्य जब अधर्ममय बन्धन का उच्छेद करके धर्म से अनुरक्त हो जाता और 5 सम्पूर्ण प्राणियों को अभयदान कर देता है, उसे उसी समय उत्तम सिद्धि प्राप्त होती है।
{909} अभयं वै ब्रह्म।
(बृहदा. 4/4/25) अभय ही ब्रह्म है-अर्थात् अभय हो जाना ही ब्रह्मपद पाना है।
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योऽभयः सर्वभूतानां स प्राप्नोत्यभयं पदम्।।
(म.भा.12/262/17) जो अभय प्रदान करता है, वही निर्भय पद को प्राप्त होता है।
REEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEER विदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/258