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{925} अहिंसां च तथा विद्धि वेदोक्तां मुनिसत्तम। रागिणां साऽपि हिंसैव निःस्पृहाणां न सा मता॥
(दे. भा. 1/18/59) (जनक जी का श्री शुकदेव जी को उत्तर-) मुनिवर्य! वेद में अहिंसा का ही कथन है। वस्तुतः हिंसा राग आदि से युक्त लोगों द्वारा ही अनुष्ठित होती है, निःस्पृह. (वीतराग) व्यक्तियों द्वारा 'हिंसा' मान्य नहीं की जाती।
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{926} इदं कृतयुगं नाम कालः श्रेष्ठः प्रवर्तितः। अहिंस्या यज्ञपशवो युगेऽस्मिन् न तदन्यथा॥ चतुष्पात् सकलो धर्मो भविष्यत्यत्र वै सुराः। ततस्त्रेतायुगं नाम यी यत्र भविष्यति॥ प्रोक्षिता यत्र पशवो वधं प्राप्स्यन्ति वै मखे। यत्र पादश्चतुर्थो वै धर्मस्य न भविष्यति॥
(म.भा. 12/340/82-84) यह सत्ययुग नामक श्रेष्ठ समय चल रहा है। इस युग में यज्ञ-पशुओं की हिंसा नहीं की जाती।अहिंसा-धर्म के विपरीत यहां कुछ भी नहीं होता है। इस सत्ययुग में चारों चरणों # से युक्त सम्पूर्ण धर्म का पालन होगा। तदनन्तर त्रेतायुग आयेगा, जिसमें वेदत्रयी का प्रचार # होगा। उस युग में यज्ञ में मन्त्रों द्वारा पवित्र किये गये पशुओं का वध किया जाने लगेगा और
धर्म का एक पाद (चतुर्थ अंश) कम हो जायेगा।
明明明明明明明明明明明明明明明明明男男男男男男男男男男男男男男男男男男 वैदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/264