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अहिंसाः ब्रह्मरूपता की प्राप्ति का साधन
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आनृशंस्यं क्षमा शान्तिरहिंसा सत्यमार्जवम्। अद्रोहोऽनभिमानश्च हीस्तितिक्षा शमस्तथा॥ पन्थानो ब्रह्मणस्त्वेते एतैः प्राप्नोति यत्परम्। तद् विद्वाननुबुद्ध्येत मनसा कमंनिश्चयम्॥
(म.भा. 12/270/39-40) समस्त प्राणियों पर दया, क्षमा, शान्ति, अहिंसा, सत्य, सरलता, अद्रोह, निरभिमानता, ॐ लज्जा, तितिक्षा और शम-ये परब्रह्म की प्राप्ति के मार्ग हैं। इनसे व्यक्ति पर-ब्रह्म को पा लेता है
है। इस प्रकार विद्वान को मन के द्वारा कर्म के वास्तविक परिणाम का निश्चय करना चाहिये।
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यदाऽसौ सर्वभूतानां न द्रुह्यति न काङ्क्षति। कर्मणा मनसा वाचा ब्रह्म सम्पद्यते तदा॥
(म.भा. 12/21/5) जब (कोई रागादि-विजयी) व्यक्ति मन, वाणी और क्रिया द्वारा सम्पूर्ण प्राणियों में # किसी के साथ न तो द्रोह करता है और न किसी की अभिलाषा ही रखता है, तब वह परब्रह्म है।
परमात्मा के स्वरूप को प्राप्त हो जाता है।
{895} अहिंसापाश्रयं धर्मं यः साधयति वै नरः॥ त्रीन् दोषान् सर्वभूतेषु निधाय पुरुषः सदा। कामक्रोधौ च संयम्य ततः सिद्धिमवाप्नुते॥
(म.भा. 13/113/3-4) (बृहस्पति का युधिष्ठिर को उत्तर-) जो मनुष्य अहिंसायुक्त धर्म का पालन करता है, वह अन्य समस्त प्राणियों के प्रति व्यवहार में मोह, मद और मत्सरतारूप तीनों दोषों को (दूर) रख कर एवं सदा काम-क्रोध का संयम/निग्रह करके सिद्धि को प्राप्त हो जाता है।
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% %%%%%%% विदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/254