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________________ NEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEms अहिंसाः ब्रह्मरूपता की प्राप्ति का साधन {893} आनृशंस्यं क्षमा शान्तिरहिंसा सत्यमार्जवम्। अद्रोहोऽनभिमानश्च हीस्तितिक्षा शमस्तथा॥ पन्थानो ब्रह्मणस्त्वेते एतैः प्राप्नोति यत्परम्। तद् विद्वाननुबुद्ध्येत मनसा कमंनिश्चयम्॥ (म.भा. 12/270/39-40) समस्त प्राणियों पर दया, क्षमा, शान्ति, अहिंसा, सत्य, सरलता, अद्रोह, निरभिमानता, ॐ लज्जा, तितिक्षा और शम-ये परब्रह्म की प्राप्ति के मार्ग हैं। इनसे व्यक्ति पर-ब्रह्म को पा लेता है है। इस प्रकार विद्वान को मन के द्वारा कर्म के वास्तविक परिणाम का निश्चय करना चाहिये। {894 與妮妮弗埃听听听听听听听听听听听垢听听听听听听听听听听听听听听听听听垢%¥¥¥¥听听听听听听听听 यदाऽसौ सर्वभूतानां न द्रुह्यति न काङ्क्षति। कर्मणा मनसा वाचा ब्रह्म सम्पद्यते तदा॥ (म.भा. 12/21/5) जब (कोई रागादि-विजयी) व्यक्ति मन, वाणी और क्रिया द्वारा सम्पूर्ण प्राणियों में # किसी के साथ न तो द्रोह करता है और न किसी की अभिलाषा ही रखता है, तब वह परब्रह्म है। परमात्मा के स्वरूप को प्राप्त हो जाता है। {895} अहिंसापाश्रयं धर्मं यः साधयति वै नरः॥ त्रीन् दोषान् सर्वभूतेषु निधाय पुरुषः सदा। कामक्रोधौ च संयम्य ततः सिद्धिमवाप्नुते॥ (म.भा. 13/113/3-4) (बृहस्पति का युधिष्ठिर को उत्तर-) जो मनुष्य अहिंसायुक्त धर्म का पालन करता है, वह अन्य समस्त प्राणियों के प्रति व्यवहार में मोह, मद और मत्सरतारूप तीनों दोषों को (दूर) रख कर एवं सदा काम-क्रोध का संयम/निग्रह करके सिद्धि को प्राप्त हो जाता है। %%%%%%%% %%%% % %%%%%男男 % %%%%%%% विदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/254
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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